सत्ता पाने की महत्त्वकांक्षा लगभग हर राज नेता को होती हैं | कोई देशहित को प्राथमिकता देता हैं तो कोई अपने पार्टी और अपनी ज़रुरत को | ये विडम्बना किसी राजनेता से परे नहीं | आज जहाँ चुनाव परिणाम बस सत्ता की वागडोर तक हीं सीमित नहीं हैं बल्कि उनके बिच विचारधारा को समर्थन हासिल कर खुद को सही साबित करने की कोशिश होती हैं |जहाँ एक ओर सीधे तौर पर हिंदुत्व की राजनीति कर भारतीय जनता पार्टी दूसरी बार सत्ता पर क़ाबिज़ हो चुकी है वहीं कई राज्यों के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को शिकस्त का सामना करना पड़ रहा हैं |जनता उनके समझ से काफी आगे हैं | अब बात कर लेते हैं नए नवेले दुल्हे की | जिनकी बारात भी नयी थी |जी हाँ अभी तक लोगो का यही मानना था की आप (आम आदमी पार्टी) अभी राजनीति के दहलीज़ को पार नहीं कर पाई हैं , लेकिन हकीकत तो हमें भी मानना होगा की , जिस तरह से अरविंद केजरीवाल ने खुद को हिन्दू मुस्लिम वाले समीकरण से बहार रख कर , दिल्ली की जनता के नब्ज को समझा और बिजली पानी वाले मुद्दे को प्राथमिकता दी जिससे बीजेपी हिंदुत्व वाले अपने हीं ऐजेंडा से विचलित हो गयी और बीजेपी भी आम आदमी पार्टी की तरह मुफ्त बिजली और पानी की बात करने लगी|मतलब समझ सकते हैं की आम आदमी पार्टी बीजेपी को कोई मौका ही नही दी की वो खुल कर मैदान में उतर सके | इसका मतलब राजनीति दाव पेच की गहरायी आप ( आम आदमी पार्टी ) भी समझने लगी हैं , वही अरविन्द केजरीवाल ने राजनीति को बिलकुल अलग अंदाज़ में पेश की , जो की उन्हें किसी परिपक्व राजनीतिज्ञ की श्रेणी ला कर खड़ा करता हैं | जहाँ दिल्ली विधान सभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी NRC और CAA जैसे मुद्दे पर चुप कैसे रह गयी ? यह एक बड़ा सवाल सामने आता हैं
इसका जबाब भी गहरी राजनीति से रु बरु करवाता हैं , राजनीति समीकरण यह कहता हैं की अगर अरविन्द केजरीवाल शाहींन बाग में चुनाव से पहले जाते और NRC व CAA पर अपनी राय रखते तो उनके लिए कहीं से हितकारी नहीं साबित होता , बल्कि CAA और NRC के पक्ष में बोलना उनके लिए बहुसंख्यक वोट में गिरावट का काम करती और अगर इसका विरोध करते तो अल्पसंख्यक वोट में कमी आती और बीजेपी उन्हें बहंत बुरी तरह से घेर लेती , उन्हों ने भी ठीक सोचा अगर वो शाहीन बाग जाते तो मुस्लिम समर्थक के रूप में उनकी छवि आती हैं जबकि देश में अभी हिंदुत्वा की लहर भी हैं
राजनीति समझ रही है आप की सरकार ;
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