मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो कुछ पल में इंसान से हैवान बन सकता है. अपने स्वार्थ और मनोरंजन के लिए कुछ भी कर सकता है फिर चाहे उसका क्रूर मज़ाक इंसानो के साथ हो, जानवरो के साथ हो, पेड़ पौधों के साथ हो या ईश्वर की बनाई हुई किसी भी कृति के साथ हो. यह बहुत ही हास्यास्पद है कि जब वह इस तरह का मज़ाक किसी दूसरे के साथ करता है और उससे परेशान देखकर आनंदित होता है, यदि वही मज़ाक उसके साथ किया जाए तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाता है।
हाल ही में ईश्वर के अपने प्रदेश के रूप में जाने वाले केरल में एक ऐसी घटना हुई जिसने सभी के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया। एक हथिनी जो न जाने कितने दिनों की भूखी प्यासी थी, इंसान के क्रूर मज़ाक का शिकार हो गयी. जब बेलियर नदी में एक हथिनी को मृत पाया गया तो ये प्रश्न उठा की उसकी ऐसी स्थिति कैसे हुई। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से पता चला की उसकी सूंड फटी हुई थी, खाने की नली भी फटी हुई थी और उसके गर्भ में एक नन्ही जान जन्म लेने की प्रतीक्षा में थी। इस रिपोर्ट से यह भी पता चला की हथिनी के पेट में पटाखे भरे अन्नानास थे।
यह संभव है की खाने की तालाश में जब हथिनी ने यह फल खाया होगा तब उसके अंदर भरे हुए बारूद के बारे में उससे कुछ विचार नहीं हुआ होगा। इस तरह के फल खाने के बाद उसके पेट में जलन हुई होगी, और उसके आंतरिक अंगो का फटना शुरू हुआ होगा। अंदर की भीषण गर्मी से बचने के लिए और अपने होने वाले बच्चे
को बचाने के लिए, बिना कोई उत्पात मचाये , बिना किसी को परेशान किये, हथिनी ने ठंडी जगह (नदी) में जाकर अपने शरीर के अंदर की गर्मी को शांत करने की कोशिश की होगी। किन्तु नदी का शीतल जल भी उसके अंदर की आग को शांत नहीं कर पाया और उसके बढ़ते हुए घावों के कारण उसने चुपचाप शान्ति पूर्वक प्राण त्याग दिए।
हम इंसान भी कितने अजीब है, अपनी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर सकते है। चाहे हमारी ख़ुशी के लिए किसी को अपनी जान भी देनी पड़े। आजकल जो महामारी चल रही है उससे इंसान को घर में बैठने को मजबूर होना पड़ रहा है। कहते है खाली दिमाग शैतान का घर होता है और ऐसे में इंसान खुराफाती हरकतो की ओर
अग्रसर होता है। इंसानो के घरो में रहने के कारण कई जगह जानवर अपने प्राकृतिक घरो से निकल कर शहरों की ओर बढ़ने लग गए है। उन्ही में से यह अभागिन हथिनी भी शामिल थी, जिसने इंसानी आबादी में जाकर यह पटाखे भरा अन्नानास खाया।
यदि हम पूरे घटनाक्रम को देखे तो एक तरफ अमानवीय हरकत इंसानो की है और दूसरी ओर हथिनी का मानवीय धैर्य है जिसने परेशानी होने के बावजूद भी और अपने होने वाले बच्चे को बचाने के लिए और अपनी शरीर के अंदर की आग बुझाने के लिए नदी मैं खड़ा होना स्वीकार किया। ऐसा नहीं कि यह सिर्फ एक हथिनी की कहानी है. यह कहानी उन बेज़ुबान जानवरो की है जो इंसानो पर भरोसा करते है, जो यह समझते है कि इंसानी आबादी में भी जंगलो की तरह सुरक्षित खाना मिलता है। वह जानवर यह नहीं जानता की इंसान बहुत स्वार्थी है जो सिर्फ अपना भला देखता है। कितने परिवार ऐसे होंगे जो अपना रसोई का कूड़ा बिना थैली के कूड़े घर में डालते है। सड़क पर विचरने वाले जानवर जैसे गाये, कुत्ता आदि हमारे द्वारा फेके गए रसोई के कूड़े को बासी रोटी, सब्ज़ी, दाल को प्लास्टिक की थैली समेत खा लेते है और अपने शरीर के अंदर प्लास्टिक भर लेते है जो धीरे धीरे उन्हें बीमार करना शुरू कर देता है।
केरल की इस घटना में तीन हत्याएं हुई है – हथिनी की, उसके होने वाले बच्चे की और मानवता की। भविष्य में शायद ही कोई इंसानो का भरोसा करे। क्या प्रकृति हमे इन इंसानी क्रूरता के लिए कोई नया दंड देगी? जागो, इंसान जागो, प्रकृति हमे बहुत अधिक मौके नहीं देगी। यदि अब भी नहीं सम्भले तो फिर शायद कभी भी नहीं
सम्भल पाएंगे। बेहतर होगा की ईश्वर की इस दुनिया में हम इंसान ईश्वर की बनाई हर कृति (पेड़,पौधे,जानवर) के साथ मिल जुलकर रहे।
यह लेख वैशाली वार्ष्णेय जी द्वारा लिखा गया है