देश के सबसे बड़े सूबों में से एक बिहार में इस वक्त सियासी सरगर्मी बेहद तेज है. चुनावी समर के बीच नेता और कार्यकर्ता जी जान से लगे हुए हैं. इस सब के बीच बिहार में सियासी घटनक्रम भी बेहद तेजी से बदल रहा है. हाल के घटना क्रम पर नजर डालें तो एलजेपी का एनडीए छोड़ना और वहीं दूसरी ओर वीआईपी का महागठबंधन से बाहर जाना, हैरान करने वाला है।
राजनीतिक विशलेषकों की मानें तो एलजेपी के एनडीए से बाहर जाने से होने वाले नुकसान की भरपायी जेडीयू को करनी पड़ सकती है. एलजेपी के इस कदम से कुछ सीटों पर जेडीयू की संभावनाओं को झटका लग सकता है. एलजेपी की बैठक के बाद जेडीयू के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतारने का फ़ैसला लिया गया. एलजेपी के इस फैसले के बाद कुछ सीटों पर जदयू का गणित बिगड़ सकता है।
Ljp ने इसी तरह का फैसला 2005 में भी किया था. उस वक्त एलजेपी यूपीए के साथ हुआ करती थी. फरवरी 2005 में upa का हिस्सा रहते हुए एलजेपी ने बिहार में आरजेडी के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए थे।
महागठबंधन से अलग होने का एलान करने के साथ वीआईपी ने कहा है कि वो सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि वीआईपी का फैसला प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी-जेडीयू को फायदा पहुंचाए. वीआईपी के अलग चुनाव लड़ने से आरजेडी का पिछड़ा वोट बंट सकता है।