नई दिल्ली:राम-जानकी संस्थान आरजेएस, नई दिल्ली और तपसिल जाति आदिवासी प्रकटन्न सैनिक कृषि बिकाश शिल्पा केंद्र(टीजेएपीएस केबीएसके),गुंटेगेरी,धनियाकली, हुगली ,पश्चिम बंगाल द्वारा पिछले छ: वर्ष पूर्व प्रारंभ सकारात्मक भारत आंदोलन के अंतर्गत महापुरुषों और पूर्वजों का सम्मान किया जा रहा है। आरजेएस राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना ने बताया कि इससे परिवार और राष्ट्र दोनों के बीच सेतु बनाकर भारत निर्माण किया जा रहा है।
पूर्वोत्तर भारत स्थित असम के श्रीमंत शंकरदेव समाज सुधार के लिए अहिंसात्मक क्रांति का प्रयास किए, आरजेएस ने इनके नाम पर असम के किसान-पुत्र के माता-पिता की स्मृति में आरजेएस राष्ट्रीय सम्मान घोषित किया गया है।
असम के वैष्णव संत और महान समाज सुधारक श्रीमंत शंकरदेव की 573वीं जयंती 26 सितंबर 2021के दिन आरजेएस फैमिली और फ्रेंड्स श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। श्रीमंत शंकरदेव का जन्म असम के नौगांव जिले की बरदौवा समीप अलिपुखुरी गांव में हुआ था। माता-पिता का साया बचपन में ही उठ गया।दादी खेरसुती ने पाला-पोसा लेकिन पत्नी
सूर्यवती के असामयिक निधन से मानसिक आघात लगा और वो वैरागी हो गए। शंकरदेव ने अपने वैराग्यी जीवन में भारत के विभिन्न तीर्थों का दर्शन किया। ये समाज में लोगों के ह्रदय से अंधकारऔर कुरीतियां दूर कर जनजागृति उत्पन्न किए। शंकरदेव नाटककार ,लेखक और संगीत मर्मज्ञ भी थे। बिहार के तिरहुत क्षेत्र के एक श्रद्धालु जगदीश मिश्र के स्वागत में शंकर देव ने महानाट अभिनय भी कराए थे। शंकर देव से प्रभावित जगदीश मिश्र बिहार से चलकर असम के बरदौवा जाकर शंकरदेव को भागवत सुनाई थी और यह ग्रंथ इन्हें भेंट किया था। ऐसे महान व्यक्ति के बारे में आरजेएस फैमिली ने राष्ट्रीय सम्मान घोषित किया है।
असम के एक किसान-पुत्र नितुल सुतिया ने अपने माता-पिता श्री गोवर्धन सुतिया श्रीमती सरूमाई सुतिया की स्मृति में आरजेएस भारत-उदय श्रीमंत शंकर राष्ट्रीय सम्मान की घोषणा की। उनका कहना है कि मैं आरजेएस फैमिली का बहुत आभारी हूं जो मेरे माता-पिता को इतना सम्मान दे रहे हैं। साथ ही पुस्तक में फोटो और परिचय दे रहे हैं। आगामी गणतंत्र दिवस का अवार्ड फंक्शन मेरे लिए यादगार रहेगा।
आरजेएस परिवार से जुड़ी शांति साधना आश्रम गुवाहाटी की बहन नयन तारा ने बताया है कि असम में तो श्रीमंत शंकरदेव का बड़ा नाम है। इनके नाम पर आरजेएस का राष्ट्रीय सम्मान पूरे देश की नई पीढ़ी को प्रेरित करेगा। श्रीमंत शंकरदेव 22 वर्ष में ही समस्त वेद,पुराण, उपनिषद एवं व्याकरण के ज्ञाता हो गए थे। ये गृहस्थ परंपरा के वैष्णव संत थे।
इनके जीवन से गृहस्थी में रहकर सन्यासी जीवन जीना सीखा जा सकता है। इसलिए शंकरदेव के अनुयाई पारिवारिक जीवन में दूसरों के कल्याण की भावना रखते हैं और जागरूकता के लिए रासलीला, नृत्य-संगीत और नाटक आदि भी करते हैं।
राम-जानकी संस्थान (आरजेएस) के राष्ट्रीय संयोजक उदय मन्ना ने कहा कि 20जुलाई 2021 से रोजाना आरजेएस राष्ट्रीय सम्मान श्रृंखला के अंतर्गत महापुरुषों की चर्चा की जाएगी।
असम के किसान-पुत्र के माता-पिता की स्मृति में आरजेएस का श्रीमंत शंकरदेव राष्ट्रीय सम्मान घोषित
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