Thursday, April 25, 2024
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सर्द शाम, शेर और उर्दू शायरी की विरासत संजोय सम्पन्न हुआ दिल्ली का सबसे पुराना साहित्यिक कार्यक्रम शंकर-शाद मुशायरा…

                                                                                                       सरसराती सर्दी और शायरों की महफिल का अपना अलग की लुत्फ रहता है। ऐसी ही एक भव्य महफिल शानिवार की शाम बाराखम्भा रोड़ स्थित मॉडर्न स्कूल के सभागार में सजी, जहां भाषा का जादू, उर्दू कविताओं के लिए उमड़ता भाव और उत्साह बखूबी देखने को मिला। मौका था साहित्य जगत के सबसे पुराने और भव्य शंकर-शाद मुशायरा का। शंकर लाल मुरलीधर सोसायटी द्वारा आयोजित शंकर-शाद मुशायरा डीसीएम की विरासत सर शंकरलाल शंकर और लाला मुरलीधर शाद की स्मृति में आयोजित किया जाता है, जो कि सामाजिक, शैक्षिक व नई दिल्ली की सांस्कृतिक धरोहर में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। इस सांस्कृतिक धरोहर ने 1953 से उर्दू मुशायरा को साहित्य कला के रूप में प्रसारित किया है और अपनी तरह के इस उत्सव ने लगातार एक परम्परा को आगे बढ़ाया है। 
 
                                                                                                           यह इस मुशायरे का 52वां वर्ष है, जिसने उर्दू शायरी की दुनिया में काफी महत्व की एक साहित्यिक संस्था के चरित्र को ग्रहण कर लिया है और पूर्व में जोश मलिहाबादी, जिगर मोरादाबादी, फैज़ अहमद फैज़, कैफी आज़मी, अली सरदार जाफरी एवम् अन्य प्रख्यात कवियों ने शंकर-शाद मुशायरा में अपनी कम्पोजिशन से विशिष्ट बनाया है। इस वर्ष, अनवर जलालपुरी (लखनऊ), प्रो. वासीम बरेलवी (बरेली), डॉ. पॉपुलर मेरठी (मेरठ), मंजर भोपाली (भोपाल), इकबाल अशर (दिल्ली), डॉ. गौहर रजा (दिल्ली), इफ्फत ज़रिन (दिल्ली), नवाज़ देवबंदी (देवबंद), शीन काफ निजाम (जोधपुर), डॉ. कलीम कैसर (गोरखपुर), सबिका अब्बास नकवी (लखनऊ), अजहर इकबाल (मेरठ) खुशबीर सिंह शाद (जलंधर), नौमन शौक (दिल्ली) और मनीष शुक्ला (लखनऊ) आदि ने इस महफिल में अपने प्रस्तुतिकरण से चार चाँद लगाये और अपनी अर्थपूर्ण व गहराई में डूबी रचनाओं से दिल्लीवासियों को मुग्ध किया।
 
मुशायरे की शुरूआत पारम्परिक शमा जलाने के साथ हुई, जिसके बाद प्रसिद्ध कवि व संचालक अनवर जलालपुरी साहब ने उपस्थित मेहमानों को मुशायरे व कलाकारों से रूबरू कराया और शुरू हुआ सफर एक अलग ही दुनिया का, जहां जीवन की कशमकश व इसके रोचक अंदाज और विभिन्न परिस्थितियों से रूबरू कराती शायरी थी। यह समां बाहर की ठिठुरती ठंडक में श्रोताओं का उत्साह बढ़ाते हुए उनकी गर्म-जोशी भरी वाह-वाही लूटता दिखा।
 
देर रात तक जारी इस सांस्कृतिक विरासत के दौरान श्रोताओं की वाह-वाही और गर्म-जोशी भरी तालियों की गड़गड़ाहट ने एक बार फिर साबित किया कि विरासत का सागर संजोय इस उत्सव और उर्दू भाषा के प्रति दिल्लीवासियों का प्रेम व स्नेह व्यापक है जो जितना ज्यादा परोसा जाये वह कम है।
 
मौके पर श्री माधव बी श्रीराम (अध्यक्ष, शंकर लाल-मुरली धर मेमोरियल सोसायटी और निदेशक, डीसीएम श्रीराम इंडस्ट्रीज गु्रप) ने कहा कि यह हमारे पूर्वजों द्वारा शुरू किया ऐसा समागम है जिसे हम युवाओं के बीच लाते हैं और हमारी कोशिश है कि यह विरासत आगे बढ़ती रहे, एक स्नेह, रोचकता और जो तहजीब व भव्यता इस भाषा की है वह जीवंत रहे। मुझे स्वयं इसका भाव और आत्मीयता प्रेरित करती है, मुझे लगता है कि इस संस्कृति, कला एवम् सच्चे अंदाज का संजोना बहुत जरूरी है। पिछले दशकों में यह विलुप्त होने लगा था लेकिन हाल-फिलहाल में इस क्षेत्र में काफी प्रयास किये जा रहे हैं और काफी सारे कार्यक्रमों के चलते यह फिर अपना जादू श्रोताओं पर बिखेरने में कामयाब रहा है जो महत्वपूर्ण और सराहनीय है। शंकर-शाद मुशायरा के माध्यम से हम अपना योगदान दे पा रहे हैं और श्रोताओं का भी सकारात्मक साथ हमे मिलता रहा है और उम्मीद है कि यह क्रम बदस्तूर जारी रहेगा।
 
                                                                                            शाम की पहली शायर थी लखनऊ की सबिका अब्बास नक्वी, उन्होंने कहा कि जब हम लिखते थे तो यही सोचते थे कि जब किसी मुशायरे में बुलाया जायेगा तो हम कवि बनेंगे, लेकिन सोचा नहीं था कि इतनी जल्दी शंकर-शाद मुशायरे जैसा मंच होगा जहां हमें पढ़ने का मौका मिलेगा। हम आज़ाद ख्याल की शायरी लिखते हैं और यही हमने आज यहां प्रस्तुत की है जिसमें जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को छुआ। शाम के दूसरे शायर थे मेरठ के अजहर इकबाल।
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