नौजवानों की जवानी धरने पर और किसान आत्महतया से परेसान
सरकार और विपक्ष मे फिर एक बार राजनीतिक जंग शुरु हो चुकी है। विपक्ष का कहना है कि मौजुदा सरकार वोट की राजनीति पर ऊतर चुकि है। विपक्ष का कहना है कि सरकार अपने राजनीति वादे को पुरा करने मे असमर्थ रही। जैसे कि जीसटी अौर नोट बन्दी जैसे बड़े कदम भी सही तरीके के साथ नही उठाई गई विपक्ष और सरकार के मध्य जनता की समसयाओं को आप आसानी से घुटने टेकते देख सकते है। जनता कि आवाज विपक्ष और सरकार कि लडाई और उपलब्धियां गीनवाने के बीच कोई सुनने को तैयार नही।मीडिया के कुछ चैनल तो सिनेमा हाॅल बन चुके है जहां सरकार और विपक्ष का चलचित्र दिखाया जाता है। परन्तु कुछ बडे मीडिया चैनल वाले जनता के आवज को उठाती भी है पर सरकार उसे मोदी विरोधी कहकर मुद्दों से हटते दिखती है।जनता जाये तो कहां जाये।जनता या कोई पत्रकार सरकार के विरोधी नारे नही लगाता, परन्तु क्या अब जनता का अपने मागों को लेकर आवाज उठाना भी सरकार के विरोध मे आता है। आइए अब जनता कि आवाज को लेकर न्यायपालिका के पास चलते है क्योंकि सरकार और हमारा चौथा स्तमंभ मीडिया इसे सुन ही नही पा रही या फिर सुन के भी अनसुना कर देती है। वैसे जनता को न्यायपालिका से भी कुछ वैसी चीज तो नही मिल पाती पर एक आशा जरूर मिलती है की चलो कोई तो हमारी भी बात सुनने के लिए बैठा है। न्यायपालिका की व्यवस्था खुद दिन पर दिन बद से बद्तर हो रही है। ऐसे मे न्यायपालिका भी सरकार के सामने घुटने टेकते नजर आती है क्योंकि सरकार कि केस की सुनवाई तो यहा एक दिन मे ही हो जाती है पर जनता की आवाज सुनने मे सालों साल बीत जाते है।ऐसे मे तो बेरोजगार नौजवान, गरीब किसान और कोई भी आम आदमी अपने मांगो को लेकर कहा जाए। क्या वह भी रोड पर उतर कर तोड़ फोड़ करे या नौजवान अपनी जवनी रोजगारी के लिए धरने देते–देते काट दे या फिर किसान अपनी किसानी छोड़कर कोई और धंधा अपना ले वैस भी जब हमारे देश के नौजवानों को रोजगार नही मिल पा रहा तो किसानों को कहा से मीले। मौजुदा सरकार की बात करे तो वो अपने वादे को पूरा करने मे असमर्थ दिखी। सरकार के 3 साल 8 महीने पूरे हो चुके है और अब तक ना ही बेरोजगारों को रोजगार मिली, ना ही भारत स्वच्छ हो पाया और ना ही देश के गरीबों के हाथ मे डिजीटल भारत पहुंच पाया। अब बारी आती है आम जनता की क्योंकि 2019 में फिर से लोकसभा चुनाव आने वाला है और जनता को अपनी राजनीति मानसिकता और राजनीति को और गहरे से समझने की जरूरत है । कम से कम जनता को अपनी मागों को लेकर सजग तो होना हि चाहीए।