Friday, April 19, 2024
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‘मेड़िकल किडनैपिंग’ की फिरौती 1 करोड़ रूपए भी ले लिए और मां की जान भी ले ली “शर्मनाक”

मेडिकल किडनैपिंग यह शब्द सुनने में  आपकों बड़ा ही अजीब लग रहा होगा, कि हमेशा से आप सभी ने अपने आस-पास किडनैपिंग जरूर देखी और सुनी होगी लेकिन मेडिकल किडनैपिंग शायद पहली बार सुना होगा।

जी हां… इस शब्द को हमने नही बल्कि उस बेटी ने चुना है जिसने अपनी मां को अपने पूरे परिवार को मेडिकल किडनैपिंग के चंगुल फंसते हुए देखा  है और अपने पिता की पूरी जिंदगी की कमाई लगभग 1 करोड़ की पूरी फिरौती देने के बाद भी अपनी मां को मेडिकल किडनैपिंग से जिन्दा बचा नही पाई।

पैसो से समृद्ध पारूल भासिन वर्मा और उसके परिवार की जिन्दगी को मेडिकल किडनैपिंग ने पल भर में ही पलट कर रख दिया…अपनी मां के साथ- साथ पिता के पूरे जीवन की कमाई को भी खो दिया। जी हां ..दिल्ली की पारूल बासिन वर्मा ने खुद अपने परिवार के मेडिकल किडनैपिंग में फंसने का दुखद अनुभव शेयर किया।

हमारे कुछ भी कहने और सुनने से पहले आप जानिए की पारूल भासिन कौन है और किस तरह से वो और उसका परिवार मेडिकल किडनैपिंग के जाल में फंसा…और मेडिकल किडनैपिंग करने वाले अपराधी कौन है?

मैं अपने परिवार की कहानी साझा करना चाहती हूं जिसने “मेडिकल किडनैपिंग” का अनुभव किया है, जहां मेरी मां को 100 दिनों से अधिक समय के लिए अस्पताल आईसीयू में भर्ती कराया गया था, जिसके दौरान दो निजी अस्पतालों तेलागंना के सिकंदराबाद में स्थित यशोदा अस्पताल और नई दिल्ली में स्थित बीएल कपूर अस्पतालों ने 1.2 बिलियन से भी ज्यादा का बिल हमारे नाम लिखा, जो कि प्रतिदिन लगभग 1 लाख का औसत भुगतान करने के लिए कहा गया। साथ ही मेरी मां को कई संक्रमित बीमारियों ने अपने जाल में फांस लिया और आखिरकार में मेरी मां को मार डाला।

मेरे पास अब कोई अन्य विकल्प नहीं है लेकिन इस जानकारी को सार्वजनिक करने के लिए के लिए मैने अपनी कहानी आप सभी से शेयर कर रही हूं। ताकि हमारे समाज के बीमार सदस्यों की मदद के लिए स्थापित इन तथाकथित अस्पतालों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सके और किसी अन्य परिवार को इस डरावनी घटना से ना गुज़रना पड़े, जिसे हमने 4 से अधिक महीनों के लिए अनुभव किया है। इन 4 महीनों के समय में घटित हुई घटनाओं को आपके सामने बयां कर रही हूं।

02 जनवरी, 2018: अमोनिया हमले के बाद मेरी मां को बीएल कपूर अस्पताल, नई दिल्ली में भर्ती कराया गया और लिवर सिरोसिस (गैर-कार्यरत यकृत के साथ लिवर रोग का अंतिम चरण) का निदान किया गया।

04 जनवरी, 2018: बीएल कपूर अस्पताल के डॉक्टरों ने उसे यकृत(लीवर) प्रत्यारोपण से गुजरने की सलाह दी। और यहां कुल खर्च 18-19 लाख रुपये हुए।

जनवरी 09, 2018: मेरी मां को अस्पताल से छुट्टी दी गई थी।

जनवरी 12-13, 2018: ज्योतिना वर्मा नाम की एक महिला (उसकी वेबसाइट से लिंक: http://www.indialivertransplant.com/…/jyotsna-verma-liver-t…), ने दावा किया कि एक लिवर हमारे लिए बहुत कम समय में उपलब्ध कराएगा, जिसका टोटल खर्चा 23 लाख रुपये आएगा ।

16 जनवरी, 2018: सुश्री ज्योत्सना ने हमें सिकंदराबाद के यशोदा अस्पताल में मृत मरीज़ से उपलब्ध लीवर के बारे में सूचित करने के लिए बुलाया। और बस महज इस जानकारी को शेयर करने के लिए 1 लाख रूपए वसुले गए

16 जनवरी, 2018: मेरे माता-पिता हैदराबाद गए और उन्हें रुपये का अनुमानित खर्च करने को कह दिया गया। लेकिन यशोदा अस्पताल के डॉक्टर ने हमें 27 लाख रुपये पे करने के लिए कहा गया। और कहा कि लीवर ट्रांसप्लेट के लिए विभिन्न रोगियों से 24-29 लाख लेते है।

05 फरवरी, 2018: मेरी मां को एक सफल लीवर प्रत्यारोपण हुआ।

08 फरवरी, 2018: फेफड़ों के संक्रमण के कारण उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था। वह अगले 30 दिनों के लिए वेंटिलेटर पर थी और ज्यादातर समय बेहोश हो रही थी। इस समय के दौरान अस्पताल ने हमें 27 लाख रूपए के अलावा रोजाना 1 लाख रुपये का अतिरिक्त चार्ज किया।

10 मार्च, 2018 के आसपास: अस्पताल में लगभग 60 लाख रूपए पे किए। इसके बाद  मेरे पिता ने कहा कि उनकी सारी बचत चली गई है और साथ ही उन्होंने काफी कर्ज ले लिया है। बड़े ही आश्चर्य की बात है कि मेरी मां को अगले दिन ही होश आ गया और धीरे-धीरे ठीक होने लगी।

13 मार्च, 2018 के आसपास: जब हमारे पास कोई पैसा नहीं था, तो डॉक्टरों ने और पैसे खर्च करने के लिए हमें कहा, लेकिन मां को केवल नर्सिंग देखभाल की आवश्यकता थी। हमने उन्हें दिल्ली वापस लाने का फैसला किया, बीएल कपूर अस्पताल के डॉक्टरों से बात की जिन्होंने हमें बताया कि वे केवल उन्हें अपनी हालत की निगरानी के लिए अस्पताल में एक दिन तक रखेंगे।

27 मार्च, 2018: हम अपनी मां को नई दिल्ली ले गए और उसे बीएल कपूर अस्पताल में भर्ती कराया। लेकिन हम कर्ज में थे, इसलिए हमारे पास बस एक ही रास्ता था कि हमने बाहर से सस्ती दवा खरीदी। इस समय के दौरान वे जानते हैं कि हम पैसे से तंग हैं, तो उन्होंने ने भी हमें और ज्यादा परेशान रखा। यशोदा अस्पताल में पैसे जमा करने करने वाले विभाग के श्री प्रवीण ने मेरी मां के इलाज को रोकने की धमकी दी, अगर हम उन्हें पैसे पे नहीं करते हैं तो वे इलाज नही करेंगे।

05 अप्रैल, 2018: मेरी मां के ठीक नही होने के बावजूद, डॉक्टरों ने हमें आईसीयू से सीधे घर ले जाने के लिए मजबूर किया।

07 अप्रैल, 2018:  सुबह मां को श्वास की बिमारी के कारण दोबारा बीएल कपूर अस्पताल में भर्ती कराया था। बीएल कपूर अस्पताल ने केवल मेरी मां को इस शर्त पर एडमिट किया कि हम अस्पताल फार्मेसी से थोक मूल्य पर 2-3 गुना की प्रीमियम कीमत पर दवा खरीदेंगे। उस समय के दौरान अस्पताल ने हमें प्रति दिन लगभग 1 लाख रूपए खर्च करने के लिए मजबूर किया। डॉक्टर भी बहुत कठोर थे, खासकर डॉ संजय सिंह नेगी, जो लिवर प्रत्यारोपण टीम के प्रमुख हैं।

20 अप्रैल, 2018: मेरी मां ने शुक्रवार की शाम को जांडिस विंकसित की और हैदराबाद के यशोदा अस्पताल के डॉक्टरों ने दिल्ली में डॉक्टरों को  मां के शरीर में जांघिया फैलाने से रोकने के लिए तुरंत उनके यकृत में एक स्टेंट स्थापित करने की सिफारिश की क्योंकि उसे एक ही समस्या थी। लेकिन दिल्ली में डॉक्टरों के लिए, उनका लास्ट विकेंड अधिक महत्वपूर्ण था और उन्होंने सोमवार दोपहर (23 अप्रैल) को स्टेंट डालने में देरी कर दी। इस देरी के दौरान संक्रमण मां के शरीर में फैल गया, जिससे कई अंग संक्रमित हो गए।

24 अप्रैल, 2018: जब डॉक्टरों को एहसास हुआ कि मेरी मां का स्वास्थ्य इलाज से परे बिगड़ गया है, तो उन्होंने हमें उन्हें ठीक करने से पहले दवाइयों और चिकित्सा प्रक्रियाओं के लिए भुगतान करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने अपना ज्यादा पैसा बनाने के प्रयास में, लगभग हर दिन एक व्यक्ति पर किडनी डायलिसिस करने पर काम किया।

07 मई, 2018: आईसीयू में 100 दिनों से अधिक समय व्यतीत करने के बाद, मेरी मां की कई अंग विफलता के कारण मृत्यु हो गई।

इन 4 महीनों के दौरान, मेरे परिवार ने इन लालची अस्पतालों के जेब भरने के लिए करीब 1.2 करोड़ रुपये खर्च किए, जो डॉक्टरों ने केवल अपने अवकाश, अहंकार और मुनाफे की देखभाल की। आज मेरे परिवार ने 51 साल की उम्र में अपने मेन सदस्य को खो दिया है, हमारी सारी जिंदगी की कमाई खत्म हो गई है और हम उन हॉस्पिटल्स को चलाने वाले लालच के कारण जबरदस्त कर्ज में हैं, जो हमारे समाज के बीमार सदस्यों की सेवा के लिए बनाए गए हैं।

साथ ही आगे पारूल ने कहा कि मैं हमारे देश के नागरिक के रूप में यह सूचना आप लोगों तक पहुंचा रही हूं कि जैसे हमारा परिवार इस नरक से गुजरा है वैसे दूसरा कोई इस दर्द को नही झेलें। मुझे लगता है कि न्याय के लिए लड़ने के लिए आपकी सहायता की आवश्यकता है और इसलिए मेरी कहानी को बंया करने मेरा कर्तव्य है। साथ ही आप सभी से अनुरोध करती हूं कि हमारे समाज को थोड़ा बेहतर बनाने के प्रयास में आपके समर्थन की जरूरत है।

इस पूरी कहानी को पारूल ने अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए लोगों तक पहुंचाया। डेलीडायरीन्यूज़ भी हर सच्ची खबर में अपनी पूरी सहभागिता निभाता है।हमने पारूल भासीन से सम्पर्क किया और इस पूरे वाक्य को अच्छे से खंगाला, जो आपके लिए बेहद ही जरूरी खबर है। डेलीडायरीन्यूज अपने प्रयासों से समाज में छिपकर बैठे लालची लोगों पर से पर्दा हटाने की हरसंभव कोशिश में जुटा है। ताकि इस समाज में जो पारूल और उसके परिवार के साथ मेडिकल किडनैपिंग जैसा दर्दनाक अनुभव मिला है ऐसी घटना किसी दुसरे व्यक्ति को ना झेलना पड़े.

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