Sunday, December 8, 2024
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संविधान दिवस – भारतीय लोकतंत्र और समावेशिता का उत्सव

संविधान दिवस : भारतीय लोकतंत्र और समावेशिता का उत्सव
26 नवंबर 2024, भारतीय इतिहास में एक मील का पत्थर है। यह दिन उस अद्वितीय संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ है, जो स्वतंत्र भारत के सपनों का आधार बना। 1949 में संविधान सभा ने एक ऐसे दस्तावेज़ को अंगीकृत किया जो भारतीय जनता की विविधता, समावेशिता और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं का प्रतीक बना। यह गर्व का विषय है कि पिछले सात दशकों में भारतीय शासन प्रणाली ने संविधान में निहित मूलभूत सिद्धांतों—स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व—का पालन करते हुए अपनी लोकतांत्रिक पहचान को मजबूत किया है।
भारतीय संविधान : भारतीयों का दस्तावेज़
भारतीय संविधान की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसे भारतीयों ने स्वयं तैयार किया और भारतीयों ने ही इसे अंगीकृत किया। यह ऐसा पहला संविधान था, जिसकी परिकल्पना और रचना में हर वर्ग और समुदाय का प्रतिनिधित्व था। डॉ. भीमराव अंबेडकर, संविधान सभा के मसौदा समिति के अध्यक्ष, ने इसे न केवल कानूनी दस्तावेज़ के रूप में देखा, बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक क्रांति का मार्गदर्शक माना।
संविधान सभा की कार्यवाही इस बात का प्रमाण है कि संविधान निर्माण का यह कार्य कितना व्यापक और समावेशी था। 11 सत्रों और 165 बैठकों में 7,600 से अधिक संशोधनों पर चर्चा हुई, जिसमें 2,500 संशोधन पारित किए गए। यह प्रक्रिया केवल एक दस्तावेज़ तैयार करने तक सीमित नहीं थी; यह भारत के भविष्य की नींव रखने का प्रयास था।
भारतीय लोकतंत्र की जड़ें
संविधान निर्माताओं ने भारतीय लोकतंत्र की परंपराओं और विरासत को समझते हुए इसे आधुनिक संदर्भ में ढाला। डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि लोकतंत्र भारत के लिए कोई नई अवधारणा नहीं है। प्राचीन भारत में गणराज्यों और निर्वाचित राजतंत्रों का अस्तित्व इस बात का प्रमाण है कि हमारी जड़ें लोकतांत्रिक हैं। वैदिक काल से लेकर मौर्य और गुप्त साम्राज्य तक, लोकतंत्र और सार्वजनिक भागीदारी हमारे सामाजिक ढांचे का हिस्सा रहे हैं।
संविधान के मूलभूत सिद्धांत और उनकी प्रासंगिकता
स्वतंत्रता: भारतीय संविधान ने हर नागरिक को विचार, अभिव्यक्ति, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान की है। यह स्वतंत्रता हमारे लोकतंत्र की आत्मा है।
समानता: संविधान ने जाति, धर्म, लिंग और वर्ग के भेदभाव को समाप्त कर सभी को कानून के सामने समानता का अधिकार दिया।
बंधुत्व: बंधुत्व का आदर्श हमारी सांस्कृतिक विविधता में एकता को सुनिश्चित करता है। यह सिद्धांत सामाजिक समरसता का आधार है।
समावेशिता: अनुसूचित जातियों, जनजातियों, और अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि समाज के सभी वर्ग मुख्यधारा का हिस्सा बनें।
संविधान और चुनौतियों का समाधान
भारत का संविधान केवल शासन व्यवस्था को परिभाषित करने का दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह हर चुनौती का समाधान भी प्रस्तुत करता है। सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान ने न्यायपालिका, कार्यपालिका, और विधायिका के बीच संतुलन बनाए रखा है।
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि संविधान का सफल क्रियान्वयन केवल उसके प्रावधानों पर निर्भर नहीं करता, बल्कि जनता और राजनीतिक दलों की निष्ठा और समझदारी पर भी निर्भर करता है। यह उनकी दूरदृष्टि का प्रमाण है कि पिछले सात दशकों में भारत ने 17 आम चुनाव और अनगिनत राज्य चुनावों के माध्यम से सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण सुनिश्चित किया।
संविधान का लचीलापन और कठोरता
हमारे संविधान की एक अद्वितीय विशेषता इसका संतुलन है। यह आवश्यक कठोरता के साथ-साथ समय के अनुरूप लचीलापन भी प्रदान करता है। संघीय ढांचे से जुड़े संशोधनों के लिए राज्यों की सहमति आवश्यक है, जबकि सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर तेजी से बदलाव की गुंजाइश भी है।
हाल ही में पारित 106वां संविधान संशोधन अधिनियम, जिसे ‘नारी वंदन अधिनियम’ के नाम से जाना जाता है, इसका जीवंत उदाहरण है। इस कानून ने लैंगिक समानता और महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। यह हमारे संविधान की समकालीन प्रासंगिकता और कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका की सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
संविधान और जनता की सहभागिता
संविधान ने हर नागरिक को एक सशक्त भागीदार बनाया है। यह केवल अधिकारों का दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह कर्तव्यों का भी मार्गदर्शक है। मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान संविधान को एक संतुलित स्वरूप प्रदान करता है।
मतदान का अधिकार और जिम्मेदारी: लोकतंत्र की सफलता नागरिकों की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करती है।
सामाजिक समरसता का कर्तव्य: जाति, धर्म और वर्ग की सीमाओं को तोड़कर सामाजिक एकता को मजबूत करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
पर्यावरण संरक्षण: आज के युग में यह कर्तव्य विशेष रूप से प्रासंगिक है।
भविष्य की दिशा
संविधान दिवस केवल अतीत की उपलब्धियों को याद करने का दिन नहीं है, बल्कि यह भविष्य की ओर देखने का भी अवसर है। भारत को आने वाले समय में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और तकनीकी विकास के क्षेत्रों में और भी प्रगति करनी होगी।
शिक्षा और स्वास्थ्य में समानता: हर नागरिक को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
सांस्कृतिक विविधता का सम्मान: भारत की विविधता उसकी ताकत है। इस परंपरा को और समृद्ध करना हमारी जिम्मेदारी है।
तकनीकी विकास और डिजिटल समावेशन: डिजिटल क्रांति को हर नागरिक की पहुंच तक लाने की दिशा में निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
संविधान दिवस हमें हमारे लोकतांत्रिक आदर्शों और मूल्यों की याद दिलाता है। यह दिन केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आत्ममंथन और संकल्प का भी है। 75 वर्षों के इस गौरवशाली सफर के बाद हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि संविधान में निहित मूल्यों का पालन करते हुए हम एक सशक्त, समृद्ध और समावेशी भारत का निर्माण करें।
हमारा संविधान न केवल हमारी आकांक्षाओं का प्रतीक है, बल्कि यह हर नागरिक को जोड़ने वाला सूत्र भी है। इस संविधान दिवस पर आइए, हम यह प्रण लें कि इसे अक्षुण्ण बनाए रखेंगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेंगे। जय संविधान, जय भारत!

प्रिंस तिवाड़ी (रिसर्च फैलो, रामभाऊ म्हाळगी प्रबोधिनी)

 

 

 

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