राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समाज में समानता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता रह है। हमेशा ही हाशिये पर पड़े समाजों, जैसे अनुसूचित जातियाँ, अनुसूचित जनजातियाँ और अन्य पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए संघ के कार्यकर्ता लगातार कार्य करते हैं। संघ का यह दृष्टिकोण समाज के उन वर्गों के प्रति समर्पित है जो मुख्यधारा से बाहर रहे हैं या जिन्हें भेदभाव और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है या पड़ता रहा है।
आरएसएस ने विशेष रूप से इन वर्गों के बीच जागरूकता फैलाने और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं। संघ के कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव में जाकर इन वर्गों को शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसर प्रदान किए हैं। इसके साथ ही, संघ ने इन वर्गों में आत्मविश्वास बढ़ाने और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने में अहम भूमिका निभाई है।
आरएसएस ने “समाज में समानता” के सिद्धांत को अपनाया और इस दिशा में कई योजनाएं बनाई। उदाहरण के लिए, “ग्राम विकास कार्य” और “शिक्षा के लिए समर्पण” जैसे कार्यक्रमों के जरिए संघ ने न सिर्फ़ शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किया, बल्कि हाशिये पर पड़े वर्गों के लिए विशेष स्कूलों और प्रशिक्षण केंद्रों की शुरुआत की। संघ के कार्यकर्ता इन समुदायों के बीच जाकर उन्हें मानसिक और सामाजिक रूप से सशक्त करने का कार्य सतत करते रहते हैं।
संघ के इस कार्य ने समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके माध्यम से हाशिये पर पड़े वर्गों को एक मंच मिला है, जिससे वे अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठा सके और सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिल सका। आरएसएस का यह प्रयास यह दर्शाता है कि समाज के सभी वर्गों के बीच समानता और समरसता की स्थापना करना संघ का मुख्य उद्देश्य है।