कांग्रेस का आखिरी किला कर्नाटक भी उसके हाथ से फिसला
कर्नाटक में एक बार फिर बीजेपी का कमल खिल गया है. सिद्धारमैया की सारी कोशिशें फेल हो गई हैं. वे लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने से लेकर कर्नाटक का अलग झंडा तक का कार्ड चले, लेकिन कोई काम नहीं आया है. बीजेपी की जीत का आधार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखा और सत्ता की हारी हुई बाजी को जीत में बदल दिया.
कर्नाटक चुनावों के शुरुआती रुझानों से कांग्रेस को निराशा का सामना करना पड़ा है. रुझानों में बीजेपी अकेले बहुमत की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है और कांग्रेस का आखिरी किला बताया जा रहा कर्नाटक भी उसके हाथ से फिसलता दिखाई दे रहा है. बीजेपी के लिए कर्नाटक में आना 2019 के लिहाज से भी काफी अहम माना जा रहा है. दक्षिण भारत में इसे बीजेपी की शुरुआत कहा जा रहा है तो कांग्रेस के लिए आने वाले दिनों में चुनौती और बड़ी होने जा रही है.
कर्नाटक में बीजेपी की जीत का सबसे बड़ा आधार पीएम नरेंद्र मोदी ने रखा है. नरेंद्र मोदी के उतरने से पहले राज्य में बीजेपी की हालत काफी पतली थी. 1 मई को मोदी की रैली में बीजेपी के नेता ने उनके सामने ही कहा था ‘मोदीजी आ गए हैं अब तो हमें जीतने से कोई नहीं रोक नहीं सकता है.’ नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में 21 रैलियां करके हारी बाजी को जीत में तब्दील कर दिया.
बीजेपी की जीत में दूसरा प्रमुख कारण जातीय समीकरण रहा है. बीजेपी कर्नाटक में लिंगायत समुदाय से लेकर आदिवासियों और दलितों को साधने के साथ-साथ ओबीसी मतों को एकजुट करने में बड़ी कामयाबी रही है. नरेंद्र मोदी ने अपनी रैलियों में दलित और आदिवासियों की बात को काफी जोर-शोर से उठाया है. इसके अलावा बीजेपी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जरिए हिंदुत्व कार्ड खेला.
लिंगायत मतों का बीजेपी पर भरोसा कायम रहा. कांग्रेस का उन्हें अलग धर्म का दर्जा देने का कार्ड नहीं चला. कर्नाटक में लिंगायत मतों की बड़ी हिस्सेदारी है और यह किंगमेकर मानी जाती है. 16 फीसदी लिंगायत समुदाय के वोट हैं. लिंगायत के मजबूत गढ़ माने जाने वाले सेंट्रल कर्नाटक में बीजेपी के लिए नतीजे बेहतर आए हैं. इसके अलावा बीजेपी अपने मतों को एकजुट करने में कामयाब रही है. जबकि कांग्रेस के वोटबैंक में जबर्दस्त सेंधमारी हुई है.