हमारे देश में हमेशा से एक आम आदमी की अहमियत को दरकिनार किया जाता रहा है क्योंकि उसे हमेशा से शोषित किया जाता रहा है. लोगों के मन में हीन भावना का बैठ जाना कि वह कमजोर हैं। और वे तमाम उम्र संकुचित होकर रह जाते हैं. लेकिन एक आम आदमी भी अगर खुद को पहचान ले, तो उसके अंदर का जुनून नामुमकिन को भी मुमकिन बना देने का दम रखता है. ऐसा ही एक सपना एक सरफिरे ने देखा था. खुद की एयरलाइन शुरू करने का. ये अपने आप में आसाधारण बात लगती है लेकिन एक गांव के शख्स के दिमाग में ये खयाल आया कि वो लोगों को सस्ते दाम में हवाई सफर कराएगा. असल जिंदगी में ये सपना सालों पहले जी आर गोपीनाथ ने देखा था. उसी सपने के साकार होने की कहानी है ‘सरफिरा ‘ .
एक रिटायर्ड आर्मी अफसर जो छत पर अकेले खड़ा है. उसकी आंखें आकाश की ओर देख रही हैं. उन आंखों की पुतलियों में एक जहाज उड़ रहा है. उस जहाज में सवार हैं उसके गांव के लोग. उसका अपना परिवार ,देश के आम नागरिक ,जिनकी आंखों में एक चमक है. ये चमक है कि वह भी एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए सस्ती हवाई यात्रा कर पा रहे हैं ।
बता दें कि सुबह-शाम बस वो यही सपना देखता है कि खुद की एयरलाइन्स खोलेगा और 1 रुपए में आम आदमी को हवा में उड़ना भरवाएगा.
लेकिन ये काम इतना आसान भी नहीं होता. पहले तो वीर म्हात्रे को अपने घर पर ही काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उनके पिता उनके इस फैसले के खिलाफ रहते हैं और इसी वजह से दोनों के बीच मतभेद बना रहता है. इसके बाद एक एयरलाइन्स खोलने के लिए फंड्स का जुगाड़ करना, बैंक्स का अप्रूवल और बड़े इंटरप्रिन्योर्स से लड़ाई – झगड़े . इन सबके बीच कई दफा वीर म्हात्रे अपने सपने को चकनाचूर होते हुए देखते हैं. लेकिन जीवन के इस सफर में उन्हें एक सरफिरी मिलती है. नाम रानी. रानी का भी एक ख्वाब होता है कि वो खुद का बिजनेस करे. जब ये दो सरफिरे मिलते हैं तो इस सपने में नई जान आ जाती है. ये फिल्म एक प्रमाण है कि आखिर किस तरह से एक आम इंसान की आंखों में पल रहा सपना भी सच हो सकता है. बस शर्त अंत तक हार न मानने की है. इस हार न मान लेने वाली कहानी को अब आप सिनेमाघरों में देख सकते हैं ।
अक्षय कुमार की फिल्म ‘ सरफिरा ‘ की बुकिंग पड़ी ठंडी, दर्शकों को कुछ खास नहीं लगी फिल्म
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