300 से ज्यादा पत्रकारों को एक झटके में निकाल बाहर कर फेंका
मीडिया संस्थानों और एजेंसियों में फैली नकारात्मकता का क्या दुष्परिणाम होता है वही कल से सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है । PTI जैसी शीर्ष और समृद्ध एजेंसी ने अपने 300 से ज्यादा कर्मचारियों को एक झटके में निकाल बाहर कर दिया।इसपर पत्रकार यूनियनें और पत्रकारों ने अपना- अपना दृष्टिकोण रखा है जिसे सकारात्मक सोच के साथ आरजेएस पाॅजिटिव पीआर (प्रेस रिलेशन)आपके लिए प्रस्तुत कर रहा है। फेडरेशन आॅफ पी टीआई इंप्लाइज यूनियन के महासचिव बलराम सिंह दहिया ने पीटीआई के सीईओ- वेंकी वेंकटेश को पत्र लिखकर देशभर से निकाले गए कर्मचारियों को तुरंत वापस लेने का अनुरोध किया है ।
यूनियन का कहना है कि गैर कानूनी ढंग से निकाले गए पीटीआई कर्मचारियों की वापसी तक सभी पीटीआई सेंटरों पर सोमवार 1 अक्टूबर 2018 से सुबह 10:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक गेट मीटिंग और धरना जारी रहेगा। वर्किंग जर्नलिस्टस आॅफ इंडिया, WJI (संबद्ध BMS) के अध्यक्ष अनूप चौधरी और महासचिव नरेंद्र भंडारी ने PTI से कर्मचारियों को नौकरी से निकालने पर रोष व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया से निकाले गए 300 से ज्यादा लोगों को वापस लेने के लिए विरोध स्वरूप ,फेडरेशन ऑफ पीटीआई एम्प्लाईज यूनियन के सोमवार 1 अक्टूबर से सुबह 10:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक शुरु होने जा रहे बेमियादी प्रतिदिन की गेट मिटिंग और धरने को वर्किंग जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया ,WJI (संबद्ध BMS )पूरा समर्थन करती है और मांग करती है कि केंद्र सरकार तत्काल हस्तक्षेप कर समस्या का समाधान कराए।
नेशनल यूनियन आॅफ जर्नलिस्टस ने सभी मीडियाकर्मियों से अपील की है कि PTI के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए वो खुलकर अपना समर्थन दें। यूनियन ने मांग की है कि सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे। आर्यव्रत श्रमजीवी पत्रकार संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमलेश श्रीवंश ने हमें बताया कि राष्ट्रपतिजी और प्रधानमंत्री जी पी.टी.आई द्वारा कार्यरत करीब 300 साथियो के साथ न्याय करते हुये उन्हें तुरंत पुनः कार्य पर रखवाने या फिर एक मुश्त भुगतान कर उन्हें पेंशन योजना का लाभ दिलाने का कष्ट करें। वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने पीड़ितों के समर्थन में कहा है कि देश की सबसे बड़ी न्यूज एजेंसी पीटीआई से 312 लोगों को एक झटके में निकाल देने की घटना बेहद शर्मनाक है। सरकार को चाहिए कि तत्काल हस्तक्षेप कर..एक मुआवजा नीति तय करे या फिर इनको काम पर वापस लिया जाये। अन्यथा देश के पत्रकारों औऱ गैर पत्रकारों के संगठनों के पास सड़क पर आने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा।
संघर्ष में जूझते पत्रकारों-सहकर्मियों और मैनेजमेंट की लड़ाई पर वरिष्ठ पत्रकार शेखर कपूर का कहना है कि “पीटीआई,हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण सहित कई दैनिक समाचारपत्रों में कनिष्ठ से लेकर वरिष्ठ पदों तक 35 वर्षों के उपरांत मैं आज के वक्त में कह सकता हॅू कि यह समय पत्रकारिता के लिए स्वर्णिम काल है लेकिन मीडियाकर्मियों के लिए नहीं। सिर्फ यही एक ऐसा पेशा है जिसमें पत्रकार जितना अधिक अनुभवी और परिपक्व होता जाएगा., पत्रकारिता में उसकी कीमत उतनी ही कम होती जाएगी।” आगे श्री कपूर बताते हैं कि आजकल ठेका और विज्ञापन प्रणाली पत्रकारिता में आरम्भ हो गई है। जैसे रिपोर्टर बनना हो या पत्रकारिता का शौक रखते हैं तो आपको विज्ञापनों का काम भी करना होगा। हालांकि हर संस्थान को आर्थिक संसाधनों की जरूरत होती है। लेकिन इसी प्रणाली के कारण अधिकांश अखबार और चैनल बंद भी होते जा रहे हैं। अखबार और चैनल तथा अन्य पत्रकारिता माध्यम आरम्भ करते वक्त उत्साह में इसी परिपाटी को अपना रहे हैं। यह मैनेजमेंट और पत्रकारिता दोनों के लिए ही घातक सिद्ध हुई है। विज्ञापन का कार्य भी करने वाला पत्रकार अपनी इमेज नहीं बना पाता और कुछ समय बाद वह हाशिये पर चला जाता है। बेहतर है कि मैनेजमेंट रिपोर्टर से रिर्पोटिंग का ही काम लें और विज्ञापन के लिए विज्ञापन प्रतिनिधि रखें जाएं।
पत्रकार अभिजीत दीप का कहना है कि काश चाटुकार तथाकथित मीडियाकर्मी इस बात को समझ पाते तो आज पत्रकारों का यह हाल ना होता ! आज पत्रकार का सबसे बड़ा दुश्मन पत्रकार ही हैं। चंद गोदी मीडिया नेताओं और अधिकारियो की चमचागिरी और आवोभगत में 24 घंटे लगे रहते हैं जिसका दुष्परिणाम यह होता हैं कि शेष अन्य पत्रकार चाहे वो प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया …….सबकी वैल्यू गिरती जा रही है । हमे लगता नहीं कि ये स्थिति हाल फिलहाल सुधरने वाली हैं । IPPCI और RJS वाट्सअप ग्रुपों से जुड़े काफी पत्रकारों ने पीटीआई को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की मंशा व्यक्त की वहीं कुछ मीडियाकर्मियों ने कहा कि इस समस्या का मानवीय आधार पर निराकरण होना चाहिए।