चौथे चरण के मतदान के साथ देश में लगभग दो तिहाई सीटों की मतदान पूरा हो चुका है. इन चारों चरणों के मतदान में अगर बंगाल में चुनावी माहौल पर विश्लेषण करें तो एक बात तो साफ हो जाती है कि बंगाल में चुनावी पर्यवेक्षक बनाये गये एक अधिकारी ने जो बंगाल के हालातों की तुलना पंद्रह साल पहले के बिहार से की है, वो ठीक ही दिखती है. बंगाल में पहले दो चरणों के मतदान के दौरान राज्य में जमकर कानून तोड़ा गया जहां राज्य में तोड़-फोड़, मारपीट, मतदान केंद्रों को कब्जे में लेने की घटनाओं को अंजाम दिया गया. तो तीसरे चरण के मतदान के दिन मुर्शिदाबाद में एक व्यक्ति पर धारदार हथियार से हमला किया गया जिससे उसकी मौत हो गई. चौथे चरण के मतदान के दिन ही भाजपा नेता बाबुल सुप्रियो की गाड़ी पर टीएमसी सर्मथकों ने हमला कर दिया जिससे उनकी गाड़ी के कई शीशे टूट गए और जमकर बवाल हुआ.
कमोबेश बिहार में इससे कंही ज्यादा बुरी स्थिति नब्बे के दशक के पहले रही थी और नब्बे के दशक के बाद से इन मामलों में तब कमी देखी गई जब एक सशक्त अधिकारी के रूप में 1955 यूपीएससी बैच के टॉपर रहे टी.एन. शेषन को चुनाव आयोग की कमान सौंपी गयी थी. एक तेजतर्रार अधिकारी के रूप में पहचान रखने वाले शेषन ने देश की जनता के साथ नेताओं को भी यह भलीभांति समझा दिया था कि निष्पक्ष चुनाव कैसे कराये जाते हैं और अगर कोई संस्था अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करे तो एक लोकतांत्रिक देश में भला क्या संभव नहीं है. दरअसल 1990 से 1996 तक के अपने कार्यकाल में श्री शेषन ने निष्पक्ष चुनाव करवाने को एक चुनौती की तरह लिया और हिमाचल प्रदेश, पंजाब, बंगाल,बिहार जैसे राज्यों में न केवल निष्पक्ष चुनाव करवाये बल्कि एक बार तो बिहार में हर बूथ पर अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती को लेकर अड़ियल रवैये की वजह से पांच बार चुनाव की तारीखों को आगे बढ़ाना पड़ा था और नौबत यंहा तक आ गई थी कि चुनाव की तारीख तय़ न हो पाने की वजह से एक सप्ताह के लिए राष्ट्रपति शासन भी लगाना पड़ा था. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में जो भी हुआ उसमें जीत लोकतंत्र के साथ चुनाव आयोग की हुई.
बंगाल में चुनावी हिंसा की घटनाओं का अपना ही रक्तरंजित इतिहास रहा है. नेशनल क्रइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट बताती है कि 2016 में हिंसा की 91 घटनाओं में 205 लोग शिकार हुए. 2015 में 131 घटनाओं में 184 लोग शिकार हुए. 2013 में 26 लोगों की जान गई. एक रिपोर्ट के अनुसार 1977 से 1996 तक बंगाल में सियासी हिंसा में 28 हजार लोगों की जान गई.
अब अगर मतदान की बात करें तो मतदान के मामले में बंगाल शीर्ष राज्यों की सूची में है. ऐसे में बंगाल में जो आंकड़े आए है वो देश के संप्रदायिक महौल को डराने वाले साबित हुए हैं.ऐसे में चुनाव आयोग की सख्त रणनीति न सिर्फ बंगाल में संवैधानिक तंत्र कि स्थापना करेगा और लोकतंत्र की हिलती नीवं को और मजबूत कर देगा जिससे फलते फूलते भारतीय परिवेश में एक संवाधानिक संस्था के तौर पर श्री शेषन के तर्ज पर खुद का नाम स्वर्ण अक्षरों से दर्ज करवा पाएगी.