देश की सबसे पुरानी पार्टी के मुखिया राहुल गांधी नागरिकता विवाद के चलते चर्चा में है. भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने एक पत्र के साथ कुछ दस्तावेजों को गृह मंत्रालय को भेजा था. इन दस्तावेजों में बताया गया है कि बैकप्स लिमिटेड नामक कंपनी जो कि इंग्लैंड के शहर हैंप्शायर के पते पर रजिस्टर्ड थी, में राहुल गांधी डायरेक्टर और सेक्रेट्री पद पर है. इस कंपनी में राहुल गांधी के पास 65 फीसद शेयर हैं. 2005 और 2006 में दाखिल कंपनी के वार्षिक रिर्टन में राहुल गांधी को ब्रिटेन का नागरिक बताया गया है. इन दस्तावेजों में राहुल का पता लंदन का दिखाया गया है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह पूरी घटनाक्रम दो साल पहले का है और गृह मंत्रालय ने अब लोकसभा चुनावों के मध्य में राहुल गांधी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इस पूरे वाक्ये में राजनीतिक घरानों में तूफान आना लाजमी था तो कांग्रेस प्रवक्ता पूरे दमखम से इस मुद्दे पर डट गए. कांग्रेस पार्टी ने बैकप्स लिमिटेड कंपनी द्वारा दाखिल वार्षिक रिपोर्ट की एक और प्रति सामने रखी जिसमें राहुल को भारतीय नागरिक बताया गया.
दरअसल सुब्रमण्यम स्वामी ने 2015 में पहले सुप्रिम कोर्ट में याचिका दाखिल की तब कांग्रेस की तरफ से सुबूत पेश करने के बाद सर्वोच्च अदालत ने जब उस याचिका को खारिज कर दिया. उसके बाद स्वमी लोकसभा की आचार समिति के पास शिकायत ले कर गये. स्वामी की शिकायत के बाद राहुल ने जब आरोप सिद्ध करने की चुनौती दी तो स्वामी चुप बैठ गये और इस समिति की चार साल में आगे कोई बैठक ही नहीं हुई.
सुब्रमण्यम स्वामी के कैरियर पर गौर करने से पता चलता है कि स्वामी की पूरी जिंदगी में कांग्रेस विरोध और उनको कोर्ट कचहरी में फसाने में ही रही है. सुब्रमण्यम स्वामी के बारे में एक किस्सा प्रसिद्ध है कि जब आपातकाल में 1975-77 के दौरान इंदिरा सरकार ने जनसंघ के लगभग सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया था और पुलिस उनके नाम का अरेस्ट वारंट ले कर भी घूम रहे थे लेकिन वह स्वामी को कभी पकड़ नही पाये. स्वामी वेश बदल कर संसद तो पंहुच जाते थे पर पुलिस के हाथ नही आते थे.
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि गृहमंत्रालय पर ऐसा कौन सा दवाब था कि शिकायत के दो साल बाद चुनाव के ठीक पहले राहुल को नोटिस जारी किया गया है. राहुल गांधी देश की राजनीति में न सिर्फ सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष है बल्कि एक जनप्रतिनिधि के तौर पर वह 15 सालों से देश की जनता की प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. अगर इन दावों सच्चाई है तो ऐसे मे चुनाव आयोग पर भी सवाल उठना लाजमी है क्योंकि देश का प्रतिनिधित्व कोई ऐसा व्यक्ति कैसे कर सकता है जो देश का नागरिक ही न हो. देश के संविधान में दर्ज जिस अनुच्छेद 9 के अनुसार कोई विदेशी नागरिक चुनाव नहीं लड़ सकता है तो उस भारतीय संविधान की रक्षा कौन करेगा ?