भारत के संविधान में अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार दिया गया है उसमें साफ़ कहा गया है कि राज्य किसी भी व्यक्ति को क़ानून के तहत समान संरक्षण देने से इनकार नहीं करेगा. इसमें नागरिक और गैर-नागरिक दोनों शामिल हैं. हम आज जिनको भारत का नागरिक बनाने की बात कर रहें हैं, उनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के प्रवासी सहित अन्य देशों के प्रवासी भी शामिल हैं. साथ ही इन देशों के मुसलमान लोग भी हैं उनको भी अनुच्छेद 14 के तहत संरक्षण प्राप्त है.
अनुछेद 14 की ये मांग कभी नहीं रही है कि एक क़ानून बनाया जाए. लेकिन हम सभी इस बात को जानते हैं कि देश में जो सत्तारूढ़ दल है वो एक देश, एक क़ानून, एक धर्म और एक भाषा की बात कहता रहा है. लेकिन अब हम वर्गीकरण करके कुछ लोगों को इसमें शामिल कर रहे हैं और कुछ लोगों को नहीं. जैसे इस्लाम और यहूदी धर्म के लोगों को छोड़ दिया गया है. ये इसकी मूल भावना के ख़िलाफ़ है.
उदाहरण के लिए अगर ऐसा कहा जाए कि जितने भी लोग तेलंगाना में रहते हैं उनके लिए नालसार में आरक्षण दिया जाएगा और बाक़ियों को नहीं दिया जाएगा तो इसका सीधा मतलब है कि ये आपने डोमिसाइल यानी आवास के आधार पर आरक्षण दिया है और इसे कोर्ट स्वीकार भी करता है. हमें समझना होगा कि अनुच्छेद 14 ये मांग नहीं करता कि लोगों के लिए एक क़ानून हो बल्कि देश में अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग क़ानून हो सकते हैं लेकिन इसके पीछे आधार सही और जायज़ होना चाहिए.
अगर वर्गीकरण हो रहा है तो यह धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए. ये आधुनिक नागरिकता और राष्ट्रीयता के ख़िलाफ़ है. सोचने वाली बात है कि कोई भी देश इन लोगों को जगह क्यों देगा. अगर भारत इस क़ानून को बना रहा है तो उसे ऐसे बनाना चाहिए कि कोई भी देश हमारे ऊपर न हंसे. हमारा संविधान धर्म के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव और वर्गीकरण को गैर क़ानूनी समझता है.