Thursday, September 19, 2024
Home Daily Diary News भारत चीन सीमा विवाद : वास्तविक सत्य

भारत चीन सीमा विवाद : वास्तविक सत्य

कहते हैं कि धरती अपनी जगह पर रहती है केवल स्वामित्व में परिवर्तन होता रहता है। जाने कितनी सभ्यताएं संस्कृतियां उनके स्मृति चिन्ह सृष्टि के आदिम छोर से अब तक काल के गाल में समा चुकी हैँ। भारत और चीन के संबंध ढाई हजार साल पुराने है, महान चीनी सम्राट चिंग ने अपनी पिछली स्मृतियों को गहरे गड्ढे में दफ्न कर के बुद्ध के उपदेशों को आत्मसात किया, प्रतिबंधित शहर के मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश में बौद्ध साहित्य की हस्त लिखित सामग्री संरक्षित की और युद्ध में रक्त पात न  करना पड़े इस लिए वाह्य आक्रमणों से बचने के लिए चीन की दीवार का निर्माण किया, चीन तिब्बत के जरिए भारत से जुड़ता था, कुछ जगहें अपवाद है, वरना भारत की सीमा तिब्बत से लगती थी और चीन से प्रत्यक्ष विवाद की दूर दूर तक कोई संभावना ही नहीं थी। हर्ष के काल खंड के बाद जहां भारत आंतरिक धरातल पर बिखराव का शिकार हो कर इस्लामी शासन के अधीन आता गया वहीं तिब्बत और चीन से दूर भी होता गया, मुस्लिम शासकों की उन बर्फ से ढंकी वादियों में कोई रुचि नहीं थी, क्योंकि पहाड़ों
पर लड़ने का कोई अनुभव ही नहीं था, सो गुजरी सहस्त्राब्दी में चीन और तिब्बत एक दूसरे से जुडते टूटते रहे, कभी तिब्बत के
शासक ने सम्पूर्ण चीन को जीत कर उस पर शासन किया तो आगे चल कर चीन के हान वंश के शासकों ने सम्राट अशोक की
तरह अपने साम्राज्य का विस्तार किया और सन 1661 में तिब्बत चीन के साम्राज्य का हिस्सा हो चुका था। आने वाली कुछ ही शताब्दियों के दौरान अपनी समुद्री शक्ति के बल पर यूरोप के देशों ने भारत और चीन पर व्यापार करते करते धीरे धीरे पूरे देश को अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया और देखते ही देखते समूचा एशिया उनकी गिरफ्त में
आ गया, औद्योगिक क्रांति और तेल की खोज ने उनके सपनों को पंख लगा दिए, एक अकेला जापान ऐसा देश था जिसने आने वाले खतरे को सन 1867 मे सूंघ लिया और तदनुरूप खुद को तैयार कर के खुद को एक औद्योगिक और सैनिक शक्ति के रूप में विकसित कर लिया था।
चीन पर पश्चिमी देशों की मौजूदगी के दौरान तिब्बत पर उसकी पकड़ कमजोर हो गयी थी और वह आजाद हो चुका था, ब्रिटेन ने उसमे कोई  दिलचस्पी नहीं ली थी, किन्तु 1888 में तेरहवें दलाई लामा के द्वारा सिक्किम पर आक्रमण के बाद उसका माथा ठनका, किन्तु पहाड़ों की जंग का कोई अनुभव ना होने के कारण उन्होंने इंतजार किया, गोरखा सैनिकों को प्रशिक्षित किया और 1903 में कर्नल यंग्स बैंड के नेतृत्व में निर्णायक जीत हासिल की, सन 1907 में चीन का एक शिष्ट मंडल दिल्ली आया और संधि के तहत तिब्बत को चीन के अधीन एक प्रांत के तौर पर मान्यता दे दी गई थी, तेरहवें दलाई लामा देश छोड़ कर भाग चुके थे, उस दौर में विश्व युद्ध की आहटें सुनाई पड़ने लगी थीं और ब्रिटेन ने तिब्बत को लेे कर रूस और जापान तक से संधियां की थीं। ब्रिटिश शासन में भी अपने अपने देशों के हितों के लिये संघर्षरत भारत और चीन के नेता एक दूसरे से गहराई से जुडे रहे, विश्व मंच पर एक दूसरे के लिए आवाज उठाते रहे और करीब-करीब साथ साथ आजाद हुए। अफरा तफरी के माहौल में हजरते मैकमोहन ने एक ऐसी लकीर नक्शे पर खींच दी जो साफ जाहिर करती थी कि उस दुर्गम क्षेत्र में कभी उनके कदम पड़े ही नहीं थे, अन्य लोगों ने भी नक्शों पर अपने निशान छोड़े है, जॉनसन अर्डाघ लाइन के अनुसार अक्साई चीन जम्मू कश्मीर राज्य का हिस्सा है, कराकोरम रेंज के पास एक मैकार्टने मैकडोनाल्ड लाइन है और इसके पश्चिम में भी एक लाइन है जिसे फॉरेन ऑफिस नाम दिया गया है, कुल मिला कर ये भारत, तिब्बत, चीन की सरकार पर निर्भर है कि वे किस तरह इनकी व्याख्या करते हैं। सब के अपने अपने दावे हैं, अपने अपने परसेप्शन हैं।
सन 1954 में पंडित जी ने नक्शा पेश किया था भारत का और सन 55 में चीन में अक्साई चीन पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था, बात चीत के कई दौर चले। जो भूमि सन पचास के पूर्व निष्प्रयोज्य थी अब विज्ञान की प्रगति के सापेक्ष महत्वपूर्ण हो चुकी थी। सन 62 का युद्ध भीषणतम रूप में इसी गलवान, डेमचोक, दौलत बेग ओल्डी रेंज में लड़ा गया था, व्यापक क्षति हुई थी दोनों तरफ के तमाम सैनिक मारे गए थे किन्तु मौसम की प्रतिकूलता के कारण अपने अपने बेस कैंप में लौट चुके थे, हालात ये हैं की अपना समझ कर वे भी आते जाते रहे हैं और हमारे लोग भी पीछे नहीं हैं, भारत की तरफ से सड़क पुल निर्माण मे आयी
तेजी ने उनके कान खड़े कर दिए हैं, अगर भारत दौलत बेग ओल्डी तक पहुंच गया तो अक्साई चिन और फिर कराकोरम तक पहुंचना आसान हो जाएगा, अक्साई चिन निश्चित तौर पर भारत का है, ब्रिटेन भी सहमत होगा। पूर्व शासक की दी हुई व्यवस्था हर किसी को मान नहीं होती है, अतः पंडित जी ने तिब्बत को चीन के अधीन एक स्वायत्त शासन प्रांत मान लिया था। किन्तु इसके बाद जो हुआ वह अप्रत्याशित था, बिना किसी उकसावे के ही उस नो मेंस लैंड पर घुस आने को अगर पंडित नेहरू द्वारा चीन को दे दिया जाना कहा जाए तो ये दिमाग का दिवालिया पन ही कहा जाएगा। उस समय भी संसद थी और किसी भी बद दिमाग व्यक्ति ने यह ओछी टिप्पणी नहीं की थी, उलटे एक एक इंच जमीन लेने की बात की थी जो बाद के वर्षों की सियासी आवारगी को भेंट हो गई। पंडित जी किसी भी गूट में शामिल नहीं थे फिर भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने चार युद्धक विमान भेजे थे और एक के तेज पुर पहूँचते ही चीन पीछे लौट गया था। युद्ध जारी रखने की स्थितियां नहीं थीं, अन्न के भी लाले पड़े थे। आज सब कुछ है फिर भी जहां सेना तैयार है सरकार के होश हिरन हैं, टी वी चैनल युद्ध लड़ रहे हैं और नेताओं को लडा भी रहे हैं, अर्थ व्यवस्था, इंफ्रा स्ट्रक्चर, स्वास्थ्य सेवा, संचार सेवा पर चीन की मजबूत पकड़ है।
                                                                                                           लेखक: पुनीत गोस्वामी (मीडिया सलाहकार – उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद)
RELATED ARTICLES

पितृ पक्ष और विश्वकर्मा जयंती पर आरजेएस पीबीएच का कार्यक्रम आयोजित हुआ

नई दिल्ली। राम जानकी संस्थान पॉजिटिव ब्रॉडकास्टिंग हाउस (आरजेएस पीबीएच) द्वारा उदय कुमार मन्ना के संयोजन में "आत्मा का घर और जीवन का सृजन* विषय...

कुशवाहा समाज द्वारा धूमधाम से मनाया गया श्री राम परिवार पूजन एवं श्री कुश लव जन्मोत्सव

गाजियाबाद : विजयनगर सेक्टर 9 के मवई गांव स्थित श्री कृष्ण मंदिर में अखिल भारतीय कुशवाहा क्षत्रिय फाउंडेशन द्वारा प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला श्री...

पीएसएआईआईएफ के सहयोग से विश्व रोगी सुरक्षा दिवस 2024 पर 260वां आरजेएस पीबीएच वेबिनार

नई दिल्ली। राम-जानकी संस्थान पाॅजिटिव ब्राॅडकास्टिंग हाउस (आरजेएस पीबीएच) द्वारा पीएसएआईआईएफ के सहयोग से “रोगी सुरक्षा के लिए निदान में सुधार” विषय पर वेबिनार...

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

पितृ पक्ष और विश्वकर्मा जयंती पर आरजेएस पीबीएच का कार्यक्रम आयोजित हुआ

नई दिल्ली। राम जानकी संस्थान पॉजिटिव ब्रॉडकास्टिंग हाउस (आरजेएस पीबीएच) द्वारा उदय कुमार मन्ना के संयोजन में "आत्मा का घर और जीवन का सृजन* विषय...

कुशवाहा समाज द्वारा धूमधाम से मनाया गया श्री राम परिवार पूजन एवं श्री कुश लव जन्मोत्सव

गाजियाबाद : विजयनगर सेक्टर 9 के मवई गांव स्थित श्री कृष्ण मंदिर में अखिल भारतीय कुशवाहा क्षत्रिय फाउंडेशन द्वारा प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला श्री...

पीएसएआईआईएफ के सहयोग से विश्व रोगी सुरक्षा दिवस 2024 पर 260वां आरजेएस पीबीएच वेबिनार

नई दिल्ली। राम-जानकी संस्थान पाॅजिटिव ब्राॅडकास्टिंग हाउस (आरजेएस पीबीएच) द्वारा पीएसएआईआईएफ के सहयोग से “रोगी सुरक्षा के लिए निदान में सुधार” विषय पर वेबिनार...

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में पहली बार होगा सम्मिश्रण सांस्कृतिक कार्यक्रम

मुख्य संसदीय सचिव एवं जिला स्तरीय अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा आयोजन समिति के अध्यक्ष सुंदर सिंह ठाकुर ने कहा कि इस बार 13 से 19...

Recent Comments