देश में लगातार बढ़ती पेट्रोल-डीजल की कीमतों के चलते लोगों को ना सिर्फ गाड़ियों से सफर के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं बल्कि इससे महंगाई भी बढ़ रही है. डीजल की बढ़ी कीमतों का सीधा असर फल-सब्जियों पर पड़ा है. पेट्रोल की कीमत जहां 100 रुपये के पार जा चुकी है तो वहीं डीजल 80 के ऊपर है. देश की जनता तेल की बढ़ती कीमतों के बीच जल्द सरकार से राहत की उम्मीद कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष इसको लेकर हमलावर है. इस बीच, केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से जब इस बारे में पूछा गया कि आखिर कब तक तेल की कीमतों में कमी आएगी तो उन्होंने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार करते हुए इसे ‘धर्मसंकट’ बताया|
निर्मला सीतारमण ने कहा- “मेरे लिए कहना अभी जल्दबाजी होगी. मैं अभी इसके बारे में कुछ नहीं बता पाऊंगी, यह धर्मसंट है.” जब वित्त मंत्री से यह पूछा गया कि कोरोना के वक्त जब कच्चे तेल की कीमत कम थी उस वक्त भी सरकार ने तेल की कीमतों में कोई कमी नहीं की, ऐसे वक्त में क्या अब कम नहीं किया जाना चाहिए. इसके जवाब में निर्मला ने कहा कि उन्हें यह बात कहते हुए झिझक नहीं है कि इस पर केन्द्र सरकार की तरफ से एक्साइज ड्यूटी लगाई जाती है. इसके अलावा वैट लगाया जाता है, जिसमें राज्यों का हिस्सा भी है. तेल पर टैक्स सरकार की आय का एक बड़ा स्त्रोत है|
निर्मला सीतारमण ने कहा है कि उपभोक्ताओं पर बढ़े दामों के बोझ को कम करने के लिए केंद्र और राज्यों को बात करनी चाहिए. सीतारमण ने कहा कि यह तथ्य छिपा नहीं है कि इससे केंद्र को राजस्व मिलता है. राज्यों के साथ भी कुछ यही बात है. ”मैं इस बात से सहमत हूं कि उपभोक्ताओं पर बोझ को कम किया जाना चाहिए|
इससे पहले दिन में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने कहा कि पेट्रोल और डीजल पर करों को कम करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच समन्वित कार्रवाई की जरूरत है. इससे पहले केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था, ”तेल उत्पादक देशों ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान उत्पादन बंद कर दिया या इसे कम कर दिया. मांग और आपूर्ति में इस असंतुलन के कारण ईंधन की कीमतों पर दबाव देखा गया|