यह जो तस्वीर में गंभीर रूप से बीमार एक व्यक्ति को देख रहे हैं वह वरिष्ठ पत्रकार Navin Kumar (Article19 India) हैं. वे जहां सोए हैं वह कोई अस्पताल नहीं है ना ही बहुत बड़ा घर है. यह एक कमरे का मेरा हॉस्टल है जिसमें खिड़की से सटी हुई आपको ड्रिप की बॉटल दिख जाएगी. बगल में बेड के सहारे ऑक्सीजन को तिरछा करके, लगाया हुआ पाइप दिख जाएगा. पत्रकार नवीन कुमार मेरे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीनियर भी हैं और दोस्त तो हैं ही. बंगाल से आने के बाद 19 तारीख को इन्होंने कोरना का टेस्ट कराया था. वह संयोग से नेगेटिव आया. लेकिन उनकी तबीयत इतनी ज्यादा खराब थी कि मुझे लग रहा था कुछ ना कुछ दिक्कत है!
27 अप्रैल को नवीन जी का कॉल आता है कि मेरा आक्सीजन तेजी से गिर रहा है “बचा सको तो बचा लो”!
मैंने उनके कई दोस्तों को कॉल किया. उनके साथ काम करने वाली शशि जी उनको लेकर लगभग 8:00 बजे लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में आयीं. तब तक बहुत मन बेचैन था. मैं लगातार कालेज परिसर में घूम रहा था. मैंने cmo से बहुत सारी रिक्वेस्ट की थी. एक बेड दे दें. लेकिन कोई भी बेड खाली नहीं था. इसलिए उन्होंने कहा हम देख तो लेंगे लेकिन बेड नहीं है हमारे पास! ऑक्सीजन का लेवल एकदम गिरता जा रहा था और साथ ही सीने में जकड़न बढती जा रहीं थी! एक इमरजेंसी में थोड़ा बीमार व्यक्ति था जो कि टॉयलेट जा रहा था. मैंने उससे कहा कि 20- 25 मिनट के लिए अपनी आक्सीजन दे दो, जब तक तुम वाशरूम जा रहे हो, लेकिन उसने मना कर दिया. उसे भी डर रहा होगा कहीं ऑक्सीजन दुबारा ना मिले क्योंकि बाहर बहुत सारे मरीज आ रहे थे. कई अन्य अस्पतालों में भी हम लोग बात किए ताकि बेड मिल जाए. कहीं संभावना नहीं दिखी. अब मेरे पास दो ही विकल्प थे. जिंदगी और कोरोना दोनों को चुनना या दूसरा क्वीट कर देना. मैंने कोरोना के साथ जिंदगी को चुना और नवीन सर को अपने रूम पर ले गया.
लेकिन हमारे पास आक्सीजन उपलब्ध नहीं थी. दवाइयां तो मैंने सभी ले ली थी और लगा भी दिया, पर ऑक्सीजन की कमी के कारण मन बहुत बेचैन सा हो रहा था कई जगह हम लोग कॉल किए हैं. अंत में लगभग रात को 11 बजे Srinivas BV ने ऑक्सीजन भिजवाई, उसके कुछ देर बाद ही Aam Aadmi Party के Durgesh Pathak ने भी ऑक्सीजन भिजवा दिया. ऑक्सीजन देने के बाद कुछ स्टेबिलिटी आई और 94 -96 पर लगभग ऑक्सीजन मेंटेन हो गया ,लेकिन अभी सुबह होते होते, लगभग पहला वाला सिलेंडर खत्म हो गया था और दूसरा वाला शुरू कर दिया था फिर भी डर था रात तक खत्म हो जाएगा फिलहाल शाम को एचआरसीटी और ब्लड जांच कराने के लिए हम लोग बाहर निकले हैं लाल पैथ यहां तक कि सरल डायग्नोस्टिक सेंटर कहीं भी डी डाइमर सीआरपी इत्यादि के लिए रिएजेंट नहीं थे और उनके ऑक्सीजन का स्तर लगातार गिरता जा रहा था अंत में सरल डायग्नोस्टिक नोएडा में एचआरसीटी तथा सीबीसी एल एफ टी केएफटी के लिए समय मिला , नोएडा जाकर के सरल डायग्नोस्टिक में जैसे ही जांच करा कर के रात को हम लोग वापस आते है डायग्नोस्टिक सेंटर से मैसेज आता आता है अपना ईमेल आईडी भेजिए और नवीन सर कहते है लिख कर के भेज दो ekthanavin@gmail.com , मैं तो पूरा का पूरा डर गया ,लेकिन असल चिंता तो आज रात के आक्सीजन की थी. फिर से एक बार फरिश्ते श्रीनिवास को कॉल की गई और उन्होंने दोबारा 11:00 बजे के आसपास ऑक्सीजन भेज दिया.
दूसरी रात भी किसी तरह गुजर गई और हालात काफी अच्छे लग रहे थे लेकिन अगली सुबह इतनी तेज तेज खांसी आना शुरू हो गई और ऑक्सीजन फल्कचुएट करने लगा , हम लोग डर गए हैं और अभी भी लगातार अस्पतालों की खोज में लगे हुए थे तब भी कहीं पर वेड नहीं मिल पा रहा था और खांसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी, जिस तरह से ऑक्सीजन जैसे ही ऊपर नीचे होता था उसी तरह से मेरी धड़कनें भी ऊपर नीचे हो रही थी हमेशा डर लगा रहता था पता नहीं क्या हो जाए, शाम होते-होते एचआरसीटी की भी रिपोर्ट आ गई और साथ में ब्लड की भी रिपोर्ट आ गए ,स्कोरिंग जरूरत से ज्यादा थी लेकिन इनकी स्थिति बिगड़ती जा रही थी और चुकी हमारे पास एक ही रूम में एक ही बेड है तो दोनों को एक ही साथ सोना पड़ता था क्योंकि मुझे जिंदगी के साथ कोरोना चुनने में कोई दिक्कत नहीं थी हालाँकि मैं कुछ महीने पहले ही पॉजिटिव हो चुका था.
इनका टीएलसी अट्ठारह हजार से ज्यादा था और तापमान भी ज्यादा था तथा साथी ही साथ आक्सीजन का गिरता हुआ स्तर बता रहा था कि यह सीवियर एक्यूट रेस्पिरेट्री इन्फेकसन में जा चुके हैं. तब तक इनका वीडियो वायरल हो चुका था और मीडिया में तमाम तरह की खबरें आने लगी थी. शाम तक इनके कई ,दोस्तों की मदद से इन्हें फॉर्टिस ओखला व लोकनायक अस्पताल का जनरल बेड का आश्वासन दिया गया था. अब दोनों को चुनना था. फोर्टिस जाना है या लोकनायक क्योंकि मैं सरकारी मेडिकल कॉलेज का छात्र रहा हूं तो मुझे लोकनायक में इलाज कराना बेहतर लगा, साथ ही साथ उसके 1 दिन पहले ही मैक्स में आक्सीजन की कमी के वजह से कई लोगों की डेथ हुई थी. गंगाराम का भी यही हाल था तो मैं आक्सीजन की कमी वाला अस्पताल का रिस्क बिल्कुल भी नहीं ले सकता था. मैं लोकनायक अस्पताल पहुंचा और जैसे ही हाई फलोरेट मास्क लगा इन की, आक्सीजन बढ़ गई और इन पर लोगों ने ध्यान देना कम कर दिया.
किसी तरह से मैंने इनका आरबीएस चेक कराया और पता चला आरबीएस 376 है फिर भी मुझे एक इंसुलिन लगवाने में 3 घंटे का समय लग गया लोकनायक अस्पताल में, क्योंकि वहां पर डॉक्टर इतने थके हुए थे, इनको देखना मुनासिब नहीं समझते थे. सबको लग रहा था कि यह एकदम नॉर्मल है. अंत में मुझे न चाहते हुए भी लड़ना पड़ा. उसके बाद इन्हें इंसुलिन का इंजेक्शन दिया गया और सामान्य वार्ड में रेफर कर दिया गया. मुझे बहुत सुकून मिला. अब ऐसी कंडीशन नहीं आएगी लेकिन जो डर था वही हो रहा था. सुबह मेरी उनसे बात हुई उन्होंने कहा कि सोनू मैं अब यहां से ठीक हो करके निकलूंगा, कोई दिक्कत नहीं है पर इनका केस sepsis की तरफ बढ़ रहा था जिसकी वजह से मैं डर रहा था इनको सेप्टीसीमिया कहीं हो न जाए. मैंने कई डॉक्टरों से बात करने की कोशिश की, इनकी स्थिति के बारे में बताया लेकिन वहां भी जनरल वार्ड में केवल और केवल कोरोना का इलाज चल रहा था क्योंकि लोकनायक अपने आप में बड़ा अस्पताल है वह अपने तरीके से इलाज कर रहा था बाकी अन्य पैरामीटर नहीं देखे जा रहे थे. फिर उसके अगले दिन डॉक्टर VP varshney सर का फोन आया मेरे पास और उन्होंने कहा उसे तुम जल्द से जल्द क्रिटिकल केयर यूनिट में डलवाओ और रेमडेसीविर की व्यवस्था करो अन्यथा कुछ नहीं होने वाला है.
उनकी मदद से मैं और शशि जी वार्ड में पी पी ई किट पहन करके पहुंचे. जब इनकी हालत देखा तो आंख से आंसू आ गए. इनका आक्सीजन लेवल 68 के आसपास आ चुका था. डॉक्टर केवल सुबह और शाम को जाते थे. जब उन्होंने बताया कि सीने में इतना तेज दर्द होता है कि लगता है जान निकल जाएगी तो मेरी तो हालत खराब हो गई. शशि जी तो बुरी तरह टूट चुकी थीं. फोन पर रोने लगीं. इनके कई मित्रों को फोन किया और प्रोफेसर Varshneya सर को भी कॉल किया. उन्होंने कहा मैं आईसीयू में भर्ती करा दूंगा लेकिन तुम रेमडेसीविर की व्यवस्था करो. जितना जल्द से जल्द हो सके. पत्रकार संदीप चौधरी से बात की गई. उन्होंने कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला को कहा और सुरजेवाला ने 2 रैमडेसीविर की व्यवस्था द्वारिका में कर दिया. मैं उस रात घूमते घूमते द्वारका पहुंचा और एमआरपी रेट पर दो रेमडेसीविर खरीद करके लाया. तब तक तक रात के 11:30 बज चुके थे और नवीन सर को सीसीयू में शिफ्ट किया जा रहा था. मैं किसी तरह दौड़ते दौड़ते उनके पास पहुंचा और रेमडेसवीर देते हुए कहा सर इसे जैसे ही पहुंचे, लगवा लीजिएगा. यह रेमदेसीविर है लेकिन अंदर जाने के बाद भी सीसीयू का तरीका अलग है इलाज करने का उन्होंने बहुत देर तक नहीं लगाया और अपने तरीके से जांच करना शुरू कर दिए.
क्या करना है ? क्या नहीं करना है? तब तक इनकी टीएलसी 18000 से घटकर के 15000 तक आ चुकी थी लेकिन सिटी स्कोर 23 हो चुका था क्योंकि अस्पताल में मेरा ही फोन नंबर लिखा था तो जब भी अस्पताल से फोन मेरे पास आता था डर लगता था कहीं कोई बुरी खबर सुनने को ना मिल जाए और मीडिया में पता नहीं क्या-क्या खबरें पहुंचा दी गई थी जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था. अगले दिन से जबरन रेमडेसीवर लगना शुरू हुई तो इनकी हालात में बहुत तेजी से सुधार होने लगा और बाद में इनको प्लाज्मा भी दिया गया , और फिर जब जब दोबारा rt-pcr हुआ तो रिपोर्ट positive भी आई थी. अमूमन ऐसी गलतियां हो जाती हैं हर रात डर लग रहा था जब तक सर का मैसेज नहीं आता था रात में सो नहीं पाता था नींद नहीं आती थी लेकिन कुछ ना कुछ अच्छी खबर आने लगी थी बाकी कभी भी एलएफटी केएफटी और अन्य जाँच आईएनआर में कोई दिक्कत नहीं आई, केवल और केवल लंग प्रॉब्लम बढ़ती चली जा रही थी लेकिन रेमदेसीविर और प्लाज्मा ने इतना अच्छा कार्य किया, कि आज नवीन सर बेहद स्वस्थ हैं और आराम से बात भी कर रहे हैं और उनके अंदर कॉन्फिडेंस आ गया है हां मैं बच सकता हूं अन्यथा उन्होंने खुद भी हिम्मत छोड़ दी थी.
रोहित सरदाना के मृत्यु के दिन उन्होंने कहा कि कहीं हार्टअटैक से ना मर जाऊं. तनाव बहुत ज्यादा लेते थे. जैसे ही उन्होंने सीटी स्कोर को देखा 23 है, मुझे डांटते हुए कहे, सोनू यह सब बता क्यों नहीं रहे हो मुझे, मैंने कहा है कि बता दूंगा तो आपको बहुत बड़ी दिक्कत हो जाएगी लेकिन अब आप सही हैं तो देख सकते हैं. उनका यह संघर्ष बहुत ही बड़ा था. अंत में मुझे केवल और केवल नवीन सर की जिंदगी मिली. आज तक अभी तक कोरोना के लक्षण नजर नहीं आए, सबके लिए एक कहानी नजर आएगी. लेकिन मैंने इस जिंदगी को जिया है जो कहते हैं रेमदेसीविर कार्य नहीं करती, उनके लिए बता देना चाहता हूं यहां पर सभी गंभीर मरीजों को रेमदेसीविर दिया जा रहा है और इसका रिस्पांस बेहद ही अच्छा है लेकिन समय से मिलना चाहिए! कुछ रातें व दिन एक बुरे सपने की तरह हैं लेकिन जिन फरिश्तों के वजह से उन्हें मदद मिली उनको मेरा कोटि-कोटि सलाम !