“भारतीयों के द्वारा भारतीयों को ही वीरगति, जिसमें भारतीयों ने ही की मदद “
देश की हर आंख नम है कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक,गुजरात से लेकर अरूणाचल तक सभी देशवासियों के जहन में बस एक सवाल है “अखिर जवानों की शहदात कब तक” सुकमा में 25 जवान शहीद नहीं हुए बल्कि शिकार बने एक एेसे गुट का जिन्हें हम नक्सली कहते हैं,”भारतीयों के द्वारा भारतीयों की हत्या जिसमें भारतीयों ने ही मदद की”..आप सोच रहें होगें की हम एेसा क्यों कह रहें है कि शहीद होने से लेकर शहीद करने तक हर जगह भारतीय हैं तो एेसा क्यों की भारतीय ही भारतीय का दुश्मन बन गया है तो आपको बता दें की नक्सली एेसे लोग जिन्हें भारतीय सरकार में भरोसा नहीं है उनका मानना है कि भारत सरकार उनके लिए कोई काम नहीं करती इसलिए उनकी मांग रहती है उनकी स्वयतता उनको दी जाए इसलिए इन लोगों ने अपना मांगो को मनवाने के लिए अपना अलग रास्ता चुन लिया है
इनका मानना है कि भारत सरकार इनकी बातों को नही मानेगी इसलिए इन्होंने अपने लोगों के खिलाफ ही हाथों में हथियार उठा लिए हैं और इनकी मदद करतें हैं गांव वाले यहां तक की भारत में रहने के बावजूद कई गांवो में नक्सलियों के कानून के हिसाब से फैसले लिए जाते हैं गांव में कोई समस्या होने पर लोग कोर्ट की जगह नक्सलियों के पास जाते हैं,नक्सलियों की पकड़ गांवो और कस्बे में सरकार से ज्यादा है जिसका सीधा सबूत फिर सुकमा में देखने को मिला जहां एक फूल फ्रूफ प्लान के तहत 300 से ज्यादा नक्सलियों ने 25 जवानों को शहीद कर दिया वहीं कई जवान घायल हो गए इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए जिसका जवाब न केवल सरकारों को देना बल्कि हर भारतीय को देना हैं कि आखिर एेसा क्यों है कि अपनों को नहीं समझा पा रहे कि ये देश आपका हम लोग अपने है ? जो समस्याएं वो सरकार के साथ बैठकर सुलझाने का प्रयास क्यों नही करते ? एेसा क्या नक्सली पाना चाहतें जो केवल उन्हें हथियारों मिल सकता है ? आखिर भारतियों को भरतीय को मारने के लिए मौत का सामान कौन दिला रहा है ?सरकारे कहां विफल हो रहीं है जो गांव वाले उनके पक्ष में खड़े जाते जिनके पास कोई अधिकार नहीं ?
इन सवालों के जवाब ढूढने के साथ हमें राजनीतिक विचारधारा के अंतर के साथ आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से ऊपर आना होगा क्योंकि जवान किसी राजनीति लाभ के लिए शहीद नहीं होता और शहादत दुख और देती है जब जान दुश्मन ने नहीं अपने ने ली हो| हमें सोचना होगा कि जब कोई जांबाज शहीद होता है तो उसका जाने का गम वो परिवार सहता है जिसने अपने कलेजे के लाल को भारत माता के चरणों में बिना किसी सवाल के सौंप दिया लेकिन उसकी शहादत पर जब राजनैतिक रोटियां सेकी जाती है तो मां का कलेजा जल उठता है मां के कलेजे को जितना सुकून और गर्व तिरंगे में लिपटे बेटे को देख मिलता है ,पिता को फक्र होता है और आंखे तो नम होती हैं लेकिन सीनी गर्व से चौंडा हो जाता है,पत्नि तिरंगे में लिप्टे पति को देख अपने को संभाल नहीं पाती फिर देश के लिए शहीद होने पर गर्व से मांग का सिंदूर पोछ देती है,बच्चों का क्या वो तो बस यह जान पाते है कि बच्चे जिन्हें भगवान का रूप माना जाता है अब तिरंगे में लिपटा वो शरीर वहीं जा रहा है….हमें आत्मचितन करने की जरूरत की इसका अंत कैसे किया जाए…..इसी सवाल के साथ डेली डायरी न्यूज नमन करता हैं है सुकमा में शहीद वीरों का जिन्होंने अंतिम सांस तक अपने देश के लिए जीए,लड़े और फिर उस शहादत को प्राप्त हुए जो शायद किस्मतवालों और वीरों को ही मिलती है