शख्त राहो में भी आसान सफर लगता है
ये मेरी माँ की दुआवो का असर लगता है।
इन्ही पंक्तियों के साथ मां के चरणों में दो शब्द अर्पित करना चहता हूँ। माँ शब्द का अर्थ बड़ा ही व्यापक है जिसे शब्दो में बांध पाना संभव नही है। ‘माँ’ शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमे समस्त संसार का बोध होता है। जिसके उच्चारण मात्र से ही हर दुख दर्द का अंत हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता हैए उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
यह बात समझने और सोचने पर मजबूर कर देती है कि एक पराया स्त्रि के आने पर माँ पराई क्यों हो जाती है। अगर हम व्यवहारिक बात कर तो यह बिल्कुल समझ से बाहर हो जाती है कि जो मां हमे इतने दिनों तक अपने से ज्यादा हमें प्यार करती है हम उसे भूल क्यों जाते है। क्या मां का प्यार व्यक्ति के भौतिक प्यार से कमजोर है? नही, मां का प्यार कमजोर नही बल्कि व्यक्ति की सोच कमजोर है। क्योंकि व्यक्ति को भौतिक प्यार के चश्में से मां का निरूस्वार्थ प्यार दिखाई नही देता है।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
माँ जिसने हमें अस्तित्व दिया उसको भला हम कैसे भूल सकते है क्योकि माँ से हम है हम से मां नही। लेकिन विडंबना यह है कि लोग आज अपने व्यक्तिगत जीवन और निजी स्वार्थ के लिए मां शब्द को भूलते जा रहे है।
प्रभू श्रीराम ने कहा था ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी अर्थात” जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। क्योंकि माँ कि ममता कि छाया ही स्वर्ग का एहसास कराती है। जिस घर में माँ का सम्मान नहीं किया जाता है वो घर नरक से भी बदतर होता है। भगवान श्रीराम माँ को स्वर्ग से बढकर मानते थे क्योंकि माँ ही आस्तित्व है माँ है तो हम है।
अगर इस संसार में कोई निरूस्वर्थ प्यार कर सकता है तो वो केवल मां है। संसार में माँ के समान कोई सहारा नहीं है। दुनिया में अगर कहीं स्वर्ग मिलता है तो वो माँ के चरणों में मिलता है। जिस घर में माँ का अनादर किया जाता है वहाँ कभी देवता वास नहीं करते।
सबसे बड़ी बात यह है कि जब बेटा और बहू मां.बाप बन जाते है तो वो अपने मां बाप उन्हे भार लगने लगते है। उन्हे शायद ये समझ नही आता है कि अखिर उन्हे भी एक दिन उसी दौर से गुजरना है।