नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समाज में प्रचलित बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा की संवैधानिक वैधता पर विचार के लिए सहमत होते हुए इस संबंध में दायर याचिकाओं पर आज केन्द्र और विधि आयोग से जवाब मांगा.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने इस दलील को स्वीकार किया कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2017 के अपने फैसले में तीन- तलाक को खत्म करते हुए बहुविवाह और निकाह हलाला के मामलों को इसके दायरे से बाहर रखा था.
पीठ ने आज कहा कि पांच सदस्यों वाली नई संविधान पीठ का गठन किया जाएगा जो बहुविवाह और निकाह हलाला के मामले पर गौर करेगी.
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को निकाह हलाला और बहुविवाह के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की. नफीसा खान सहित चार याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इन दोनों प्रथाओं पर रोक लगाने और इन्हें असंवैधानिक करार दिए जाने की मांग की थी. याचिका में नफीसा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि आईपीसी की धाराएं सभी नागरिकों पर बराबरी से लागू होने चाहिए. उन्होंने कहा कि तीन तलाक आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता माना जाता है. वहीं बहुविवाह को धारा 494 के तहत एक अपराध माना गया है. ऐसे में इन प्रथाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि कानून के तहत ये दोनों अपराध की श्रेणी में आते हैं. बहुविवाह जहां मुस्लिम पुरूषों को एक समय में एक से ज्यादा महिलाओं से विवाह करने की अनुमति देता है. वहीं निकाह हलाला ऐसी प्रथा है जिसमें तलाक दिए जाने पर यदि दोनों फिर से निकाह करना चाहतें हैं तो तलाक देने वाले पति से दुबारा शादी करने से पहले मुस्लिम पत्नी को किसी अन्य व्यक्ति से विवाह करके उससे तलाक लेना होता है. पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से अपने फैसले में तीन- तलाक को असंवैधानिक करार दिया था. शीर्ष अदालत इन प्रथाओं को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इनमें समता के अधिकार का हनन और लैंगिक न्याय सहित अनेक मुद्दे उठाये गए हैं.