लॉकडाउन, लॉकडाउन और लॉकडाउन पूरे भारत में चारों तरफ लॉकडाउन की ही आवाज गूंज रही है। चीन में जन्मा एक ऐसा वायरस जिसने ना सिर्फ चीन को दहलाया बल्कि दुनिया के तमाम 190 बड़े- बड़े और विकसित देशों को झकझोर कर रख दिया है। दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका जब इस कोरोना वायरस के संक्रमण से नही बच पाया और वो इटली देश जो पूरे विश्व में हेल्थ स्पेस्शिलिस्ट माना जाता है वो अपने तकरीबन 7000 नागरिक को खो चुका है, तो भारत जैसा विकासशील देश इसकी जद से कैसे बच पाता।
आज इस कोरोना वायरस के संक्रमण से देश के तकरीबन 600 लोग संक्रमित है और 10 लोगों की मौत हो चुकी है। तो भारत सरकार और देश के प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने देश की जनता को इस अदृश्य दुश्मन से बचाने के लिए एक बेहतरीन रास्ता खोजा है। और वो रास्ता है 21 दिन के लॉकडाउन का।
1 अरब 25 करोड़ जनसंख्या वाला देश विश्व भर में सबसे अधिक दूसरे नम्बर वाली आबादी वाला देश माना जाता है। और इतनी अधिक जनसंख्या वाले देश में लॉकडाउन करना और होना दोनों ही एक चुनौतीपूर्ण और संघर्षपूर्ण परिस्थिति को दर्शाता है। अभी तक किसी भी देश में इस कोरोना वायरस से मुक्ति प्रदान करने वाली कोई भी वैक्सीन या दवाई तैयार नही की गई है तो वहीं भारत देश के सभी डॉक्टर और चिकित्सालय इस अथक प्रयास में लगातार जुटे हुए है ताकि संक्रमित लोगों को बचाया जा सकें।
भारत देश की केन्द्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के लॉकडाउन द्वारा देश को संभालने की कवायद काबिले तारीफ तो है मगर अब सवाल यह उठता है कि जिन परिवारों के पास खाने-पीने की चीज़े नही है या फिर जो रोज कमाता है रोज खाता है वह व्यक्ति अपना और अपने परिवार का भरण -पोषण कैसे करेगा? क्या सरकार सिर्फ लॉकडाउन करके देश को बचा रही है या जन-जन तक खाना-पीना पहुंचाकर भी उन्हें मरने से बचा रही?