नई दिल्ली। “बेटियों को बचाएं ही नहीं बल्कि शिक्षा का कार्यान्वयन व बेटियां को सशक्त बनाएं” ये कहना था ब्रह्माकुमारी लता का वहीं
समाज सुधारक शबनम फाजिल खान ने कहा कि हम कोमल हैं लेकिन कमजोर नहीं हैं।
अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस2024 पर राम-जानकी संस्थान पाॅजिटिव ब्राॅडकास्टिंग हाउस (आरजेएस पीबीएच) आरजेएस पाॅजिटिव मीडिया द्वारा 24 सितंबर 2024 की शाम को आरजेएस पीबीएच की प्रभारी शिक्षिका डा.मुन्नी कुमारी द्वारा आयोजित व संचालित किया गया। आरजेएस पीबीएच के संस्थापक व राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना द्वारा ये 264 वां सफल कार्यक्रम रहा।
कार्यक्रम के सह-आयोजक आरजेएस पीबीएच पटना की प्रभारी और बिहार में शिक्षिका डा.मुन्नी कुमारी ने बेटियों पर कविता सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
“हां मैं बेटी हूं ! दो कुलों की लाज हूं। मैं ही जीवन का कल और आज हूं। और ,बेटियां ईश्वर का वरदान हैं,
बेटियां जीवन का आधार हैं।” उन्होंने आगे कहा कि
एक समय था जब भ्रूण हत्या की जाती थी । कहीं कहीं बेटियों के जन्म लेने पर शोक मनाया जाता था।
लेकिन अब बेटियों ने सफलता के झंडे गाड़ने शुरू किए तो मानसिकता में बदलाव दीखने लगा। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी भीकाजी कामा, लक्ष्मी बाई, इंदिरा गांधी और आज की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मूर्मू की चर्चा की बताया कि ये सभी सकारात्मक बदलाव की मिसाल हैं।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मोटीवेशनल स्पीकर बीके लता ने कहा कि
बेटियों को केवल बचाने के लिए ही अभियान चलाने की आवश्यकता नहीं है,बल्कि बेटियों को सशक्त बनाने की आवश्यकता है उनमें वह हर कार्य पूर्ण करने की हिम्मत भरने का काम माता पिता कर सकते हैं । लेकिन उन्हें कार्य के साथ मर्यादाएं ,संस्कार इसकी समझ देना यह भी माता-पिता की जवाबदारी है ।
कई बार बेटियां अपने आप को बेटों की बराबरी करने के लिए अपने संस्कारों को भूलकर, मर्यादाओं को भूलकर कुछ ऐसे कदम उठा लेती हैं, जिसका परिणाम गलत होता है।
बेटा और बेटी वास्तव में यह शरीर रूपी वस्त्र है इस वस्त्र को धारण करने वाली आत्मा है। आत्मा जो कर्म करने की ताकत रखती है वह शक्ति ,जो नाम से ही शक्ति हैं उसको शक्ति बाहर से नहीं चाहिए स्वयं की जागृति और स्वयं के लिए सकारात्मक सोच यही सशक्त बेटियों की पहचान बनती है ।
समाज सुधारक और टीवी डिबेट पैनलिस्ट शबनम फाजिल खान ने कहा कि नारी के कई रूप हैं, कोमल है लेकिन कमजोर नहीं है। वो सिलना भी जानती है,तो बदमाशों से टकराना भी जानती हैं। यह माता-पिता की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि वह बेटा-बेटी में फर्क ना करें। उन्होंने अपने स्वर्गीय सैनिक पिता को अपना प्रेरणास्रोत बताया।
उन्होंने बेटियों को राष्ट्र की मुख्य धारा में सकारात्मक कार्य करने का आह्वान किया।माता-पिता एक बरगद की तरह होते हैं,जो हमें छांव देते हैं। उन्होंने कल्पना चावला, नीरजा भनोट,किरण बेदी, सानिया मिर्जा, सरोजिनी नायडू , अहिल्याबाई होलकर या साबित्रीबाई फुले की बात करें, कहीं ना कहीं एक पुरुष हमेशा उनके साथ खड़ा रहा है। पुरूष पिता समान आकर बेटियों को संरक्षण और शेल्टर दिया है फिर महिलाओं ने कमाल कर दिया है।
आरजेएस पीबीएच ऑब्जर्वर दीप माथुर ने बताया कि 29 सितंबर को संस्कार भारती हाॅल दीनदयाल उपाध्याय मार्ग नई दिल्ली के कार्यक्रम में विश्व हृदय दिवस पर मन की सकारात्मक शक्ति:दिल से दिल तक विषय पर परिचर्चा आयोजित की गईं है। पं.दीनदयाल उपाध्याय के 108वीं जयंती पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया जाएगा और आरजेएस पीबीएच के न्यूज़ लेटर का लोकार्पण होगा।
शुक्रवार 27 सितंबर को कार्यक्रम के सह-आयोजक राजेन्द्र सिंह कुशवाहा ने बताया कि विश्व पर्यटन दिवस पर सायं 5 बजे वेबिनार आयोजित किया जाएगा। कार्यक्रम में जुड़ें प्रतिभागियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।