बंगाल का ताज कहा जाने वाला दार्जिलिंग सुलग रहा है। देश मे बड़े टूरिस्ट प्लेस के तौर पर अपनी अलग पहचान रखने वाले दार्जिलिंग में इन दिनों पर्यटन का बुरा हाल है
दार्जिलिंग में हो रहे हिंसक आंदोलन का इतिहास नया नही बल्कि नेहरू के समय से चला आ रहा है। दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में गोरखालैंड की मांग वर्षो पुरानी है। इस मुद्दे पर बीते लगभग तीन दशकों से कई बार हिंसक आंदोलन हो चुके हैं। ताजा आंदोलन भी इसी की कड़ी है। दार्जिलिंग इलाका किसी दौर में राजशाही डिवीजन (अब बांग्लादेश) में शामिल था। उसके बाद वर्ष 1912 में यह भागलपुर का हिस्सा बना। देश की आजादी के बाद वर्ष 1947 में इसका पश्चिम बंगाल में विलय हो गया।
अखिल भारतीय गोरखा लीग ने वर्ष 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु को एक ज्ञापन सौंप कर बंगाल से अलग होने की मांग उठायी थी। उसके बाद वर्ष 1955 में जिला मजदूर संघ के अध्यक्ष दौलत दास बोखिम ने राज्य पुनर्गठन समिति को एक ज्ञापन सौंप कर दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी और कूचबिहार को मिला कर एक अलग राज्य के गठन की मांग उठायी। अस्सी के दशक के शुरूआती दौर में वह आंदोलन दम तोड़ गया। उसके बाद गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के बैनर तले सुभाष घीसिंग ने पहाड़ियों में अलग राज्य की मांग में हिंसक आंदोलन शुरू किया। वर्ष 1985 से 1988 के दौरान यह पहाड़ियां लगातार हिंसा की चपेट में रहीं। इस दौरान हुई हिंसा में कम से कम 13 सौ लोग मारे गए थे। उसके बाद से अलग राज्य की चिंगारी अक्सर भड़कती रहती है।
राज्य की तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने सुभाष घीसिंग के साथ एक समझौते के तहत दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद का गठन किया था। घीसिंग वर्ष 2008 तक इसके अध्यक्ष रहे। लेकिन वर्ष 2007 से ही पहाड़ियों में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बैनर तले एक नई क्षेत्रीय ताकत का उदय होने लगा था। साल भर बाद विमल गुरुंग की अगुवाई में मोर्चा ने नए सिरे से अलग गोरखालैंड की मांग में आंदोलन शुरू कर दिया।
बंगाल का ताज कहा जाने वाला दार्जिलिंग सुलग रहा है। देश मे बड़े टूरिस्ट प्लेस के तौर पर अपनी अलग पहचान रखने वाले दार्जिलिंग में इन दिनों पर्यटन का बुरा हाल है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा स्कूलों बांग्ला भाषा अनिवार्य करने के बयान के बाद दार्जिलिंग में संकट का दौर शुरू हो गया था। दार्जिलिंग की आबादी का एक बड़ा हिस्सा नेपाली व संथली बोलने वाले हैं। उनकी तीन पसंदीदा भाषाओं में मातृभाषा, अंग्रेजी व हिंदी है। विरोध शातिपूर्ण ढंग से शुरू हुआ लेकिन पुलिस कार्रवाई ने मामले को गंभीर बना दिया। आंदोलन लगातार तेज होता गया जो देखते ही देखते हिंसा में बदल गया।