अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी युग के रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सबसे बड़े दलित चेहरा माने जाते है।
देश के राष्ट्रपति चुनावों का नतीजा आ चुका है और रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति चुने गए हैं। रामनाथ कोविंद को 66 फीसदी वोट मिले तो विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को 34 फीसदी वोट मिले हैं। एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद की जीत तय मानी जा रही थी। रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश से आने वाले पहले राष्ट्रपति बन गए हैं।
बीजेपी दलित मोर्चा और अखिल भारतीय कोरी समाज के अध्यक्ष रह चुके कोविंद बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी युग के रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सबसे बड़े दलित चेहरा माने जाते थे। कोविंद उत्तर प्रदेश से आने वाले पहले राष्ट्रपति बन चुके हैं।
रामनाथ कोविंद पिछले तीस साल से राजनीति में हैं। दलितों के कोरी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कोविंद का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में छोटे से गांव परौख में हुआ था। अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में शुरू से ही अनुसूचित जातियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं की लड़ाई लड़ने वाले कोविंद को आठ अगस्त 2015 को बिहार का राज्यपाल बनाया गया था।
रामनाथ कोविंद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बड़े नेताओं के करीब रहे हैं। कानपुर शहर से 80 किलोमीटर दूर कानपुर देहात के रनौख-परौख जुड़वां गांव हैं। यहीं परौख में जन्मे रामनाथ अब देश की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठने वाले हैं। रामनाथ के करीबी मानते हैं कि रामभक्त होने के नाते संघ के बड़े नेताओं के दिल के वो हमेशा करीब रहे हैं और राष्ट्रपति पद पर चयन के लिहाज से ये खूबी भी उनके पक्ष में गईं।
रामनाथ का कार्यक्षेत्र-
रामनाथ ने 1990 में बीजेपी में शामिल होकर लोकसभा चुनाव लड़ा। चुनाव तो हार गए लेकिन 1993 और 1999 में पार्टी ने इन्हें राज्यसभा भेज दिया गया। इस दौरान रामनाथ बीजेपी अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने। साल 2007 में रामनाथ बोगनीपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन फिर जीत नहीं सके। इसके बाद उन्हें यूपी बीजेपी संगठन में सक्रिय करके प्रदेश का महामंत्री बनाया गया और पिछले साल अगस्त में बिहार का राज्यपाल बनाया गया।
एलएलबी की पढ़ाई करने के बाद रामनाथ ने आईएएस की तैयारी की थी। सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास भी की लेकिन आईएएस कैडर न मिलने की वजह से उन्होंने वकालत करने का फैसला किया। रामनाथ कोविंद ने दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत की। 1977 से 1979 तक दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार के वकील रहे। जबकि 1980 से 1993 तक सुप्रीम कोर्ट में वकालत की।
एक वकील के रूप में कोविंद ने हमेशा गरीबों और कमजोरों की मदद की। खासकर अनुसूचित जातिाअनुसूचित जनजाति के लोगों, महिलाओं, जरूरतमंदों और गरीबों की वह फ्री लीगल एड सोसाइटी के बैनर तले मदद करते थे। अक्तूबर 2002 में कोविंद ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित किया था।
कोविंद लखनऊ स्थित भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के प्रबन्धन बोर्ड के सदस्य और भारतीय प्रबन्धन संस्थान कोलकाता के बोर्ड आफ गवर्नर्स के सदस्य भी रह चुके हैं। कोविंद ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है और अक्तूबर 2002 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित किया था।