गांव के बड़े बुजुर्गों के लिए तो रामनाथ कोविंद अब भी रामू ही हैं, लेकिन यहां के नौजवानों के लिए वे बस एक रोल मॉडल हैं
रामनाथ कोविंद का जन्म देश की आजादी से करीब दो साल पहले हुआ था। एक अक्टूबर 1945 को मैकूलाल और फूलमती के घर में रामनाथ पैदा हुए थे। रामनाथ नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उनके पिता परचून की दुकान घर से ही चलाते थे। रामनाथ जब पांच साल के थे तो आग में जल कर उनकी मां की मौत हो गई थी। दलितों के कोरी जाति में जन्मे रामनाथ की पांचवीं तक पढ़ाई गांव में ही हुई, वो भी एक ऐसे स्कूल में जहां छत तक नहीं था।
लखनऊ से 160 किलोमीटर दूर कानपुर जिले के परौंख गांव में अब एक सरकारी स्कूल बन गया है। पक्की सड़कें भी हैं। लेन देन के लिए स्टेट बैंक अॉफ इंडिया की शाखा भी है। गांव से कुछ दूरी पर एक इंटर कॉलेज है। और ये सब रामनाथ कोविंद की मेहरबानी से हुआ है। गांववालों के लिए वे उम्मीदों के ख़जाने हैं, इसीलिए तो सब मिल कर उनकी जीत के लिए अखंड पाठ कर रहे हैं। गांव वालों का कहना है कि रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने तक यह पूजा चलती रहेगी।
गांव के बड़े बुजुर्गों के लिए तो रामनाथ कोविंद अब भी रामू ही हैं, लेकिन यहां के नौजवानों के लिए वे बस एक रोल मॉडल हैं। बिहार का गवर्नर बनने के बाद पिछले साल दिसंबर में रामनाथ कोविंद कुछ घंटों के लिए अपने गांव आए थे। राष्ट्रपति बनने के बाद कोविंद ने गांव आने का वादा किया है।
रामनाथ कोविंद तो बचपन में ही गांव छोड़ चुके थे। आठवीं की पढ़ाई के बाद उनका गांव आना जाना कम ही रहा। यहां अब उनका कोई नहीं रहता। कोविंद ने तो अपना पुश्तैनी घर भी सरकार को दान दे दिया है। बाद में उनके सारे नाते रिश्तेदार झिंझक में बस गए। रामनाथ भले ही राष्ट्रपति बन जाएं लेकिन अपनी भाभी के लिए आज भी वे लल्ला ही हैं, जिसे कचैड़ी और गन्ने के रस वाली खीर पसंद है।
रामनाथ कोविंद के पुश्तैनी गांव से क़रीब 20 किलोमीटर दूर एक क़स्बा है झिंझक। यहां उनके तीन भाईयों शिवबालक, मनोहरलाल और प्यारेलाल का परिवार रहता है। रामनाथ से पांच साल बड़े प्यारेलाल की कपड़े की छोटी सी दुकान है। रामनाथ कोविंद पांच भाईयों में सबसे छोटे हैं और इन सबके साथ वाली ये इकलौती तस्वीर है, वो भी 43 साल पुरानी। दो बड़े भाई मोहनलाल और शिवबालक अब दुनिया में नहीं रहे। रामनाथ अपने बड़े भाई शिवबालक के सबसे क़रीब रहे।