सीएजी ने कहा है कि भारतीय सेना के पास बहुत से वॉर रिजर्व तो मात्र 10 दिन के लिए ही हैं जबकि युद्ध के लिए कम से कम 40 दिन का वॉर रिजर्व होना चाहिए।
CAG ने कहा देश की सरहद की सुरक्षा के लिए पर्याप्त गोले बारूद नही। सरहद पर चीन और पाकिस्तान से चल रही तनातनी के बीच सीएजी ने भारतीय सेना के गोलाबारूद की कमी को लेकर चिंता जताई है। अपनी रिपोर्ट में सीएजी ने कहा है कि भारतीय सेना के पास बहुत से वॉर रिजर्व तो मात्र 10 दिन के लिए ही हैं।
आज संसद में रखी रिपोर्ट में सीएजी ने कहा कि सेना को युद्ध के लिए कम से कम 40 दिन का वॉर रिजर्व होना चाहिए। हालांकि सेना ने इसे घटाकर 20 दिन का ‘अॉपरेशनल वॉर रिजर्व’ कर दिया है, लेकिन इसके बावजूद सेना के पास बहुत से ऐसे महत्वपूर्ण गोलाबारूद हैं जो सिर्फ 10 दिन के लिए हैं।
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में खराब गोलाबारूद को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब गोलाबारूद का पता करने में भी काफी समय खराब किया जाता है। खराब गोलाबारूद के बारे में लिखा गया है कि इन्हें ठिकाने ना लगाने के चलते एम्युनेशन डिपो में आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं।
ये रिपोर्ट ऐस समय में सामने आई है जब डोकलम विवाद को लेकर चीन भारत को युद्ध की धमकी दे चुका है और पाकिस्तान की तरफ से रोज युद्धविराम का उल्लंघन हो रहा है यानि अघोषित युद्ध छेड़ रखा है।
ये कोई पहली बार नहीं है कि सीएजी ने सेना के गोलाबारूद के कमी पर चिंता जताई है। सीएजी ने 2015 की रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय और अॉर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। रक्षा मंत्रालय ही सेना के लिए पर्याप्त गोला-बारूद के लिए जिम्मेदार है जबकि अॉर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड इस गोला-बारुद का स्रोत केन्द्र है और सेना को सप्लाई करने के लिए जिम्मेदार होता है।
गौरतलब है कि, मौजूदा विदेश राज्यमंत्री वी के सिंह जब थलसेना प्रमुख थे तो उन्होनें भी सेना के तोपखाने में गोला बारूद की कमी का मुद्दा उठाया था। इस मामने पर उनके द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखी गई चिठ्ठी के लीक होने से उस वक्त काफी बवाल खड़ा हो गया था।
इसके अलावा सीएजी ने नौसेना की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि पिछले 10 सालों में 38 बड़ी दुर्घटना हो चुकी हैं जिसमें युद्धपोत और पनडुब्बियों को नुकसान हो चुका है लेकिन इन्हें रोकने के कोई कारगर कदम उठाए गए हैं।