नई दिल्ली: अॉल इंडिया रेडियो केजुअल एनांउसर एण्ड कम्पीयर यूनियन की दूसरी आम सभा दिल्ली में दिनांक 11 अगस्त 2017 को संपन्न हुयी जिसमें देश भर से विभिन्न आकाशवाणी केन्द्रों से आये केजुअल ने भाग लिया। बैठक में निर्णय लिया गया कि प्रसार भारती के महानिदेशक से 12 सितंबर को मुलाकात कर उन्हे देश भर के केजुअल की समस्याओं से अवगत कराया जायेगा एवं इस बारे में चर्चा कर उनसे समस्याओं का हल निकाला जायेगा एवं महानिदेशक से मुलाकात ना होने पाने की स्थिति में विभाग की दमनकारी एवं हठधर्मिता वाली नीति के विरुद्ध गेट मीटिंग की जायेगी।
ज्ञात हो कि पिछले कई दशकों से आकाशवाणी में अनुबंध आधार पर केजुअल कर्मी काम कर रहे हैं। आकाशवाणी की अनियमितता और भेद भाव की नीति ने इन्हें आंदोलन में उतरने पर मजबूर कर दिया है। अपनी नियमितीकरण की मांग के लिये ये कर्मी 3 बार जंतर मंतर पर भुख हड़ताल पर बैठ चुके है जहां से सरकार के मंत्रियों ने इन्हें नियमितीकरण का आश्वासन दे कर हड़ताल को समाप्त करवाया।
तत्कालीन प्रसारण मंत्री एम वेंकैया नायडू ने इन्हें नियमित करने का आश्वासन दिया था और प्रसार भारती के अधिकारियों को इस बात का मौखिक आदेश भी दिया था कि इन्हे तत्काल नियमित करने के लिये योजना बनाकर उसे मूर्त रूप दिया जाये लेकिन अधिकारियों ने अपने ही मंत्री के आदेश को धता बता दिया।
प्रसार भारती के इस रवैये के कारण केजुअल को मजबूरन न्यायालय का दरवाजा खटखटाकना पड़ा जहां इन अनियमित कर्मियों से सम्बंधित याचिका लंबित है, और माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मामले पर अंतिम फैसले तक यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया है ताकि इस बीच याचिकाकर्ताओं को विभाग द्वारा प्रताड़ित न किया जा सके साथ ही जिन पदों पर बरसों से कार्यरत ये कर्मी नियमित किये जाने की मांग कर रहे हैं उनपर नई भर्ती न की जा सके किन्तु माननीय न्यायालय के इस आदेश को धता बताते हुए गत कुछ माह से आकाशवाणी निदेशालय इन याचिकाकर्ताओं सहित सभी कैजुअल कर्मियों के प्रति दुर्भावना से ग्रसित होकर बदले की नीति अपनाते हुये बलात रूप से ऐसे काग़ज़ों पर हस्ताक्षर करवा रहा है जिससे इन केजुअल के नियमितिकरण के हक़ को मारा जा सके।
हालांकि ये संविधान और मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है व ऐसे शपथ पत्र का न्यायालय में कोई महत्व नहीं होता जिसे ज़बरदस्ती या मजबूर करके लिखवाया गया हो। इसी बीच प्रसार भारती ने न्यायालय के स्टे आदेश को दरकिनार रखकर एक आदेश री स्क्रीनिंग का निकाला है जिसमें जबरदस्ती समस्त केजुअल को एसाईनी बनाया जा रहा है और एक से एक तजुर्बेदार केजुअल का पुनर्परीक्षण किया जा रहा है ये दलील देकर कि वक्त के साथ आवाज़, प्रस्तुति और कार्यक्षमता में गिरावट आ जाती है। प्रसार भारती के इस अवैध आदेश के विरोध में देश भर में 2000 से अधिक कर्मी हाई कोर्ट और कैट से स्टे ले चुके है किन्तु इन स्टे ऑर्डर को दरकिनार कर बड़े पैमाने पर अवैध भर्तियाँ जारी है। उल्लेखनीय ये भी है कि अधिकाशं केन्द्रों पर आवश्यकता से अधिक कर्मी पहले ही मौजूद हैं।
आकाशवाणी के अधिकारी संसद को भी गुमराह करने में माहिर हैं देश की कई संसदीय समितियों ने इन अनियमित कर्मियों को नियमित करने की अनुशंसा करने के बावजूद उनकी अनुशंसाओं को कचरे के डिब्बे में डाल दिया है और बेतुकी बातों से संसदीय समितियों को गुमराह करने का प्रयास बार बार किया जा रहा है।
सूत्रों की माने तो केजुअल कर्मियों को बाहर का रास्ता दिखाने के षड्यंत्र के साथ ही शीर्ष अधिकारी, आकाशवाणी में पिछले दरवाजे से भर्ती करने में लगे हुए है। इन नयी भर्ती में चुपचाप वार्षिक या द्विवार्षिक आधार पर चहेतों को नियुक्त किया जा रहा है जिनका मानदेय 20 हजार से 80 हजार महीना के बीच है। प्रसार भारती के अंतर्गत दूरदर्शन में भी इसी प्रकार की नियुक्तियां की जा रही है जहां बिना अनुमोदित पोस्ट के ये अभियान जारी है। इन भर्तियों में योग्यता और अनुभव को भी दरकिनार किया जा रहा है।
प्रसार भारती के आला अधिकारी सिर्फ ऐसा नहीं है कि केजुअल के प्रति दुर्भावना रखते हैं बल्कि ये अधिकारी अपने आकाशवाणी और दूरदर्शन के नियमित कर्मियों के केरियर को कुचलने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं इन नियमित कर्मियों की ये स्थिति है कि अपने हक़ को पाने के लिये इन्हे भी अपने विभाग के विरुद्ध न्यायालय की शरण लेनी पड़ रही है।
आकाशवाणी और प्रसार भारती की ज्यादतियां अपने अनियामित उद्घोषकों और प्रस्तोताओं पर सतत रूप से चल रही हैं जिन का विरोध अखिल भारतीय स्तर पर जारी है । लोग विभिन्न न्यायालयो में गुहार लगा कर री स्क्रीनिंग, नए ऑडिशन पर रोक लगाने के लिये मजबूर है पर निदेशालय के अधिकारी तानाशाही रवैया अपनाते हुये भरसक ये कोशिश कर रहे हैं कि या तो केजुअल गुलामों की तरह काम करें या उन्हे आकाशवाणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये।
इन सभी समस्याओं को लेकर अॉल इंडिया रेडियो केजुअल एनांउसर एण्ड कम्पीयर यूनियन महानिदेशक से मिलकर एक सम्मानपूर्ण हल निकालने के लिये प्रयासरत है।