ऑटोमेशन और नई टेक्नॉलजी के हिसाब से ढालने की कोशिश
भारतीय आईटी सेक्टर के मिड लेवल एंप्लॉयीज का भविष्य धुंधला नजर आ रहा है क्योंकि इंडस्ट्री खुद को ऑटोमेशन और नई टेक्नॉलजी के हिसाब से ढालने की कोशिश कर रही है। मिड लेवल पर करीब 14 लाख लोग काम करते हैं। मिड लेवल एंप्लॉयीज वे होते हैं जिनके पास 8-12 साल का अनुभव है और उनका वेतन 12 लाख रुपये से लेकर 18 लाख रुपये सालाना तक है। इंडस्ट्री में अभी जिस रीस्किलिंग और रीस्ट्रक्चरिंग की बात चल रही है, उसके केंद्र में यही लोग हैं।
इन्फोसिस के सीईओ विशाल सिक्का ने इकनॉमिक टाइम्स को पिछले साल दिए इंटरव्यू में कहा था, ‘हर कंपनी इनोवेशन के लिए कंसल्टेंट्स को करोड़ों डॉलर देती है क्योंकि उन्हें लगता है कि इस लिहाज से उनका साइज बहुत बड़ा है। उसके बाद मैकिंजी जैसी कंपनियां आती हैं तो कहती हैं कि आपका मिडल मैनेजमेंट धराशायी हो चुका है। वे हमेशा मिडल मैनेजमेंट को ही बेकार बताती हैं।’ उन्होंने बताया था, ‘मिडल मैनेजमेंट का सच यह नहीं है। दरअसल, मिड लेवल मैनेजमेंट का बाहरी दुनिया से कोई सरोकार नहीं होता।’
यही समस्या की असली जड़ है। कई साल तक एक्सपर्ट्स कहते रहे कि आईटी सेक्टर में करियर ग्रोथ इससे तय होती है कि एक एंप्लॉयी कितने लोगों को मैनेज कर रहा है। कभी भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया कि उसने कितनी नई तकनीक की जानकारी ली है। भारतीय आईटी सेक्टर में मिडल मैनेजमेंट पारंपरिक तौर पर ‘पीपल मॉडल और एफिशंट डिलीवरी’ पर आधारित रहा।